पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/१४८

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Labsamme अध्याय ३ रा दिल्ली अप्रैलके अनमें श्रीमत नानासाहब पेशवा दिल्लीको भेट देकर आये थे। और तबसे हर एक जन सर्व सम्मनिसे निश्चित ३१ मई इतवार की ओर ऑख लगाये बैठा था। ठीक ३१ मईको यदि समचा हिंदुस्थान उठता • तो अंग्रेजी शासनके विनाश तथा भारतीय विजयी स्वाधीनताका सस्मर णीय प्रसग इतिहासमें अंकित करने के लिए १८५७ के बाद बहुत समय न जाता। किन्तु मेरटके अकालिक चिद्रोहने कातिकारियोंकी अपेक्षा अग्रेजोको अधिक सुविधा कर दी। मेरठके चाजारमे तेजस्वी

  • (स. २१) इतनी बात पक्की है कि, यदि समूचे भारतमें एकाएक विद्रोह फूट पडता और अंग्रेज वेखबर होते, तो हमारे (गोरे) बहुत ही थोडे जन इस वेगवान् संहारसे बच जाते । फिर तो, ब्रिटिंग राष्ट्रको फिरमे हिंदुस्थानको जीतना बडा कठिण कार्य हो जाता अथवा तो हमे अपने पूरवी साम्राज्यके लिए सदाही काला दाग मत्थे लगा लेना पड़ता।-- मॅलेसन खण्ड ५.

“ मेरठके भयकर विद्रोहने हमें एक बड़ा लाभ अवश्य पहुँचाया । वह यह कि समूचे भारतके सैनिकोंके विद्रोहका निश्चित कार्यक्रम १ मईको था, जहाँ इस कुअवसरके उत्थानने हमें समयपर जागरित या" व्हाइट का इतिहास, पु. १७