पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२०३

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अध्याय ६ वा] १६५ [रुहेलखण्ड नये काडतूस बरतना बद किया जाता है; और उन पुराने काडतूसोंको तुम्हे दिया जायगा, जिनके बारेमें किसीको कोई आपत्ति नही है। साथ साथ उसने स्पष्ट जताया, "यदि ऐसे नये काडतूस कहीं मिल जायें तो उन्हें पहलेही मिट्टीमें गाड देंगे।" उसने इस नाटकीय भाषणसे सैनिकोके सदेहको साफ करनेका जतन किया। असलमे काडतूसोके बारेमें अब कुछ कहना व्यर्थ था । क्यों कि, स्वातन्यका झण्डा गगनमे ऊँचा फहराते रखने के लिए रुहेलखण्डकी जनताको दिल्लीके स्वदेशी सिंहासनसे स्वयं (अर्जट) निमत्रण अमी आ पहुंचा था। तो ऐसे शाही निमत्रणको बहानेबाजीसे थोडेही टाला जा सकता ? निमत्रण पत्र यो था:--- ___ दिल्ली के सिपहसालारके बरेलीके सेनापतिको अतःकरणपूर्वक प्रेमालिगन । भाईसाहब, दिल्लीमें अंग्रेजोंके साथ युद्ध जारी है। परमात्माकी कृपासे पहली चोटमें हमने अग्रेजोंको हार दी, जिससे बादमे टस बार हरानेपर भी न होते, उतने पस्त-हिम्मत हम उन्हे कर सके हैं। दिल्लीको स्वदेश और स्वाधीनताके लिए झूझनेवाले राष्टवीरोंका तो तांता बॅध गया है ! ऐसे बाँके समयमें आप यदि वहॉ खाना खाते हो, तो हाथ धोनेको यहाँ पहुँचिये। दिल्लीके शाहेनशाह सम्राट आपका स्वागत कर आपकी सेवाकी पूरी कद्र करेंगे। आपकी तोपाके धडाके सुननेको हमारे कान तथा आपके दर्शनको हमारे नयन बहुत प्यासे हैं। चलिये, रवाना हो जाइये! क्यों कि, भाईसाहन, बसत आने तक गुलाबका पौधा क्योंकर फूल फेकेगा ? चिना दूधके बच्चा कैसे जीएगा!" ऐसा निमत्रण क्योकर टाला जा सकता है ? जब यह निमत्रण मार्ग तय कर रहा था, तब यहाँ हाफिज रहमतके वशके रुहेलोंका अन्तिम स्वतत्र नेता खान बहादुर खॉ गुप्त कातिकारी सस्थाका जाल बुननेमें मगन था। च कि, खॉ साहब हाफिजके कुलके थे और अंग्रेजी न्याय-विभागमें माजस्टेट रहे थे, अब अंग्रेजोंसे पेन्टान पाते थे । समूचे रुहेलखडमे उन्हे अग्रजकि कृपापात्रकी हैसियत से लोग जानते थे किन्तु बरेली में सभी गुप्त क्रातिसस्थाओके तो वे प्राणरूप थे। हाँ, उपर्युक्त निमत्रणपर ३१ मई तक, जसा कि पहलेसे निश्चित था, अमल स्थगित करनेकी सलाह हुई । यहाँके सभी सिपाही किसी तरह आज्ञाभग न करते हुए अग्रेजोंके हुक्मकी तामील