पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२०७

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अध्याय ६ वा] [रुहेलखण्ड हमलेका काम किया और अग्रेजोंने उनके प्रति विश्वास प्रकट किया। मईके अन्ततक इसको डॉवाडोल करनेवाली कोई घटना न हुई। ३१ मईको सवेरे सब सैनिक संचलनभूमिपर जमा होते नजर आये। विना हुक्मके वे क्यों कर वहाँ आये, इसका जवाब तलब करनेको जब गोरे अफसर आ पहुँचे तो उन्हें उत्तर मिला “कपनी सरकारका कारोबार अब समाप्त हो चुका है। अब तुम अपना बोरिया-विस्तरा उठाकर इस देशसे तुरन्त चलते बनो। न मानोगे तो तुम्हे जानसे हाथ धोना पडेगा। ध्यान रहे, दो घटोंमें तुम यहाँसे रवाना हो जाओ और मुरादाबादसे अपना मुंह काला करो।" मुरादाबाद के पुलीस दलने भी घोषणा की कि अबसे अंग्रेजोकी आजा वे नहीं मानेंगे: नागरिकोंने इसका अनुमोदन किया। इस तरह ताबडतोड इन तीन चेतावनियोंको पातेही मुरादाबादके सभी न्यायाधोग, कलेक्टर, शस्त्रवैद्य तथा अन्य गोरे लोग अपने बालबच्चोंके साथ, नाश्चत समयके पहले चुपचाप माग गये । और जो गोरे दो घटोंके बाद भी वहीं टालमटूल करते रहे मिले, उन्हें क्रातिकारियोंने खतम कर डाला। कमिगनर पॉवेलने अन्य कुछ गोरोंके साथ, इस्लामको कुबूलकर अपनी जान बचायी। सैनिकोंने सरकारी मपत्ति हथिया ली और सूरज भगवान अस्ताचल पहुँचनेके पहले मुरादाबादपर क्रातिकारियोका स्वाधीनताका झण्डा लहाने लगा।* बरेली और शहाजहाँपुरके वीचमे बढायें पड़ता है। यहाँका कलेक्टर और मजिस्टेट कोई एडवर्डस था। रुहेलखण्डमे अंग्रेजी राज शुरू होतेही पाक पुराने जमींदार वेशुमार करोके बोझ तथा अन्य डॉट डपटसे ऊब उठे थे। बड बर्ड रईस और उनकी असामियोम परस्पर असतोष फैल रहा था। बदायूम लगान इतना अधिक था कि उसमे चिढकर बदायूकी जनता सगठित होकर अंग्रेजी सत्ताका खात्मा करनेका मौका ही ढूँढ रही थी। एडवडस् भी इसे जानता था और इसीसे उसने बरेलीसे सैनिक सहायता मा मांगी थी। किन्तु बरेलीकी स्थिति, जैसा कि हम बता चुके है, पहले बिगड गयी थी। वहासे सहायता मिलना दूभर था। तो भी बरेलीसे

  • चालम् बॉल कृत इडियन म्यूटिनी