पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/२९१

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अध्याय १० वा] २४९ [ उपसहार । भूलसे भी न आया। उसी तरह 'हमारा सस्थान भलेही हथेली जितना हो, वह एक स्वतत्र राष्ट्र है; या ब्रिटिश प्रातोंकी जनतासे हमे कोई सरोकार नहीं, वे स्वशासित तथा पूर्णतया अलग देशविभाग है ' इस प्रकारकी सकीर्ण भावना भी किसीके मनमे न थी। एकही मातृभूगिकी सतान और एक दूसरेसे परायोके समान दूर ? छि; नहीं: कदापि नहीं । अब १८५७ है; सारा भारत अब एकप्राण, अखण्ड, एकरी भाविकी रस्सीम 'पिरोया हुआ दीख पड़ता है। इस लिए, ओ गवालियरके गिदे ! अग्रेजोके साथ मिडनेकी हमे अनुज्ञा दो; हॉ, केवल छूट नहीं, तुम हमारे नेता बन हमारे साथ रहो ! 'स्वदेग' और 'स्वधर्म' के महामत्रको जप कर, श्री महादजीका अधूरा कार्य पूरा करनेको अपनी सेनाके साथ रणमैदानमे चलो। सारा देश श्री जयाजी शिदेके नामपर आस लगाये बैठा है। लगाओ! युद्धका नारा जगाओ। तब आगरा तुरन्त गरण मॉगेगा, दिल्ली स्वतत्र होगा, दख्खन गरज उठेगा, विदेशियोंको निकाल बाहर कर दिया जायगा, स्वदेश पराधीनताके पापसे मुक्त होगा और तुम ? तुम इस देशकी स्वाधीनताका वरदान देनेवाले नरश्रेष्ठ बनोगे। बीम करोड मानवोंका जीवित अव एक व्यक्तिकी हॉ या ना पर डॉवाडोल है। इतिहासने ऐसा प्रसग कभी नहीं देखा! __हाय, किन्तु वह एक शब्द बोलनेको शिदेकी जीभ चिपक गयी और जब वह खुली, तब 'युद्ध' के बदले 'मित्रता' के बखान करने लगी। गिदेने भारतसे नहीं, अंग्रेजोंसे मित्रता निवाहनेका निश्चय किया। यह मालूम पडतेही जनता क्रोधसे भडक उठी। शिदे युद्धसे दूर रहना चाहते हो तो हम लडेंगे। मातृभूमिको मुक्त करने तुम न आना चाहो, तो तुम्हारे बिना, और ऐसाहीं समय आ जाय, तो तुम्हारे विरोधमे भी हम यह काम करेंगे । आजतक हम शिदेके आ मिलनेकी राह देखते रहे, खैर, आजके सूरजके अस्ततक हम समय देते हैं। सूरज गर्क होगा और फिर 'हर, हर, महादेव'! वह उधर गाडीमे कौन जा रहा है ? श्री. कूपलड और.उनकी पत्नी ? और उनके स्वागतके लिए कौन आगे बढ़ रहा है ? १४, जून १८५७के बाद फिरगीको नमस्ते १ अरे, वह देखो वहॉ ब्रिगेडियर आ