पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/३९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय ५ वॉ] [लखन आशुटराम कानपुर पहुंचा । हैवलॉक से आधिपत्य के पूर्ण अधिकारों को सौंप जाने के बाद सर्व प्रथम असने आज्ञा घोषित की-" लखन का मुहासरा तोड़ने के लिये आज तक बड़ी वीरता और धैर्य से चेष्टां करनेवाले ही को अस की जीत का श्रेय मिलना चाहिये । अिस लिये लखनअ का घेरा झुठने तक, मुख्य सेनानी होते हु भी, मै वीर इंपलॉक को मेरे पद का अधिकार सौंपता हूँ और मै अक स्वयसेवक के समान अस के अधीन काम करूँगा।" __अपने नये सेनापति के अिस पहली ही अदारता से अंग्रेजी सेना को क्या हि नैतिक पाठ मिला होगा ! व्यक्तित्व अपने राष्ट्र के हित में कितना मेक रस हो गया होगा। जिस प्रथम घोषणासे हैवलॉक को सेनाधिपत्व सौप कर आअटराम ने असाधारण आत्मत्याग, अदारता और महामनत्व का परिचय दिया! । जिस प्रकार अदात्त, सदाचारी सीख से प्रेरित और आयर, आअटराम, कूपर जैसे वीरों के मातहत आ पहुंची अंग्रेजी सेना की सहायता से कानपुर की सेना दुगने अत्साहसे लखन को छुड़ाने के लिओ २० अगस्त को गंगापार होने चल पडी । 'लखन क्या, बस, ५-६ दिनों में स्वतंत्र कर देता हूँ ' कहकर २५ जुलामी को असपर दखल करने को अतावला इंपलॉक; अवध में पैर जमाना ही असम्भव हो जानेसे कानपुर को लौट जानेका दुर्भाग्य जिसे बदा वह १२ अगस्त का इषलॉक और करारी आशा से गहराया हुआ २० सितबर का हवलॉक ! तीन कितने भिन्न चित्र ! जिस समय असके पास २५०० गोरे सैनिक, सिक्ख और अन्य मिलकर लगभग ३२५० सैनिक थे। चुनिन्दा रिसाला, अत्तम तोपखाना, तथा नील, आयर, आयुटराम जैसे अफसर थे। अब वह अवध के क्रांतिकारियों की थोडे ही परवाह करता। फिरंगी के पापी स्पर्श से स्वदेश की रक्षा के लिअ आगे बढनेवाले जमींदार को कत्ल किया गया। मातृभूमिपर से फिरंगी सवारों के घोड़े दौडते हुमे न देख सकने से जलते, लडने पर अतारू हुआ और आत्माभिमानी गाँव को भस्मसात् कर दिया गया। मार्ग में हर नदी, हर सडक, हर खेत स्वदेशी लहू से लथपथु कर दिया गया। जिस