पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४००

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अनिमलय] ३५६ . [ तीसरा खंड सेना के कारण निष्प्राण बनी लखन की अंग्रेजी सत्ता को सहायता पहुँचाता खुली हुी दिली की सेना नहीं पहुंचा सकती थी । क्यों कि, दिली प्रांत में झुठी आधी को शान्त करने का कठिण काम असे पूरा करना था। ___ अंग्रेजी, सेनापति सर कॉलिन कम्बल १३ अगस्त को कलकत्ते में अतरा । अस दिन से २७ अक्तूबर तक क्रांतिकारियों से सारे भारत को मुफ्त करने की अक बहुत गहरी योजना बनाकर, असे सफल बनाने की सिद्धता में वह व्यस्त था। मद्रास, सिलोन तथा चीनसे आयी हुी सेना को, ठीक मात्रा में असने बाँट दिया। कासिमबाजार के शस्त्रालय में नयी तोपें । ढलवाी गयीं । शस्त्रास्त्र, गोलाबारूद, रसद, कपडा, यातायात आदि के बारे में बहुत बढिया प्रबंध कर दिया। मिस तरह अस विराट सिद्धता को पूर्ण करने में वह दो महीने लगा रहा; अिस बीच असे खबर मिली कि हैवलॉक और आशुटराम दोनों लखन की रेसिडेन्सी में अबतक बंद पड़े हैं। तव, अक बार पतन होनेपर फिरसे अत्थान करनेवाले लखनभू की खबर लेने के लिओ कॅबेल २७ अक्तूबर स्वयं कलकत्ता से चल पड़ा। साथ साथ अक नौदल ( आरमारी बेडा) कर्नल पविल तथा विलियम् पील के नेतृत्व में अिलाहाबाद के जलमार्ग से भेज दिया गया। कलकत्तसे. अिलाहाबाद और कानपूरतक सभी बडी बडी सडकोंपर अिन अंग्रेज नौसौनिकों को क्रांतिकारी दस्ते बार बार सताया करते। ये सब दस्ते अक साथ कहीं. मिल जाते तो अंग्रेज अस की खूब खबर लेते। किन्तु कुँवरसिंह के ये चेले. अंग्रेजी नौसैनिकों के आसपास मडराते रहते, सामने कभी न आते और हमले के बिना अन की हस्ती का पता तक लगने न देते; अिस तरह वृकयुद्ध (गेरिले) की नीतिपर चलकर प्रांतभर में अंग्रेजों की नाक में दम कर देते। कजवा नदी के पास अिन क्रांतिकारी दस्तों का मिलाज करने के झगडे में कर्नल मारा गया। जिस दिन क्रांतिकारियों की तलवार ने पॉवेल के रक्त से अपनी प्यास बुझायी, असी दिन कॅम्बेल कानपुर पहुँचा! अंग्रेजी सेना को क्रांतिकारी छुफे दस्तों ने स्थान स्थानपर किस तरह हैरान किया होगा जिस का प्रत्यक्ष और भयंकर अनुभव स्वयं सेनापति कॅम्बेल को मिला। .