पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४२५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

अध्याय ७ वॉ] . ३८३ लखम का पत्तन , कायर नही था कि योरी-सेना के आक्रमण से डर जाय यदि जैसा होता तो अग्रेजी कंधावर को पेंक देने, की चेष्टा ही क्यों करता ? जिस दिन अग्रेजी सत्ता को असने अपने प्रदश से भगा दिया, असी दिन से वह पूरी तरह जानता है कि ये गोरे फिरसे आक्रमण करेंगे ही। और तभी तो अवधने अपने हजार हाथोंसे मुकाबले के लिअ ताल ठोंका । किन्तु असे यह न मालूम था-खयाल . तक न था-कि नेपाली गोरखों को लेकर जंगबहादुर असपर चढ आवेगा। शत्रु आकर असे चीरेगा यह तो वह अच्छी तरह जानता था; किन्तु अपना मित्र, अपने भाभी, आकर असपर क्रूरता की कुलहाडी चला)ये वह तो अप्स के सपने में भी नहीं आ सकता था । अग्रेजों के साथ भिडने को वह हरदम , सज्ज था, किन्तु भारत की स्वाधीनता के लिये भारतही के क हिस्से के साथ असे झगडना पडेगा, अिस लज्जास्पद बात की कल्पनातक वह न कर ' सकता था । सो, अवध की फजीहत करने के लिये जब जंगबहादुर गोरखा को लेकर बेचारे अवधपर चढ आया, तब अक ऑख अपघने नेपाल की दिशामें देखा और असकी आँखों से आंसुओं के सोते बहने लगे। नेपाली दस्तों के साथ अपने अग्रेज 'मित्रों की सहायता के लिखें जंगबहादुर लखनअ पर चढ आ रहा था। अंग्रेज बन असके मित्र और भारत. शत्र! काडतों में गौ की चरबी चोपडनेवाले अप्त के मित्र और सुर भ्रष्ट काडतूसों को दाँत से काटनेसे अिनकार करनेवाले अस के बैरी 1 भारतीय मितिहास को कालिख पोतनेवाले अिस जंगबहादुर ने स्वातव्य-समर का प्रारंभ सुन कर, फिरंगी से हस्तांदोलन कर, अपने तथा अपने कुल को कायम कलंकित किया। १८५७ के कुछ पहले वह अिंग्लैड हो आया था; और, अंग्रेज बितिहासकार बड़े गर्व से बताते हैं, अंग्रेजों की शान और सामर्थ्य को असने अपनी आँखों देखा था, जिस से अन के विरुद्ध मैदान लेने की हिम्मत वह न कर सका। क्या सचमुच, अग्रेजों की शान तथा सामर्थ्य अितनी आतंकपूर्ण थी ! जंग. बहादूर भिग्लैंड गया था तो नानासाहब के अजीमुल्ला तथा सातारे के रंगो बापूजी भी तो सिंग्लैंड हो आये थे! सिंग्लैंड की यात्रा का अनपर क्या प्रभाव पडा और सिंग्लैंड की सागर्थ्य की अक अक बात देख कर असी सामर्थ्य