पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४२६

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अनिमलय] ३८४ [तीसरा खंड की धज्जियाँ अडाने का कठोर निश्चय अन्होंने कैसे किया, अिसकी साख अिति. हास ही तो देता है । अिग्लैंड की यह सामर्थ्य भी जंगबहादुर की राष्ट्रद्रोही वृत्ति का मण्डन कैसे कर पायगा ? अंग्रेजों के बल के प्रभाव से अजीमुद्धा और रगो बापूजी के स्वदेशभक्त अंतःकरण में, मातृभूमि के मत्थे पर स्वाधीनत का मंगल तिलक लगा कर असे स्वतत्र सम्राज्ञी-पद पर विराजमान करने की अमंगें ही दुगने वेगसे अमड आयीं; जहाँ अिधर अिंग्लैंड के बल से अिस राष्ट्रद्रोही काले नाग की चार ऑखें होते ही मदारीने तुम्बडी से इलकी ध्वनि फंकी-तुम अपनी मातृभूमि को हमारी लौंडी बनाने में सहायता करोगे तो और दो धुंटे दूध तुम्हें पिलाया जायगा । और अिस हीन स्वार्य को साधने के लिये मातृभूमि का नीलाम करने पर अतारू अस जंगबहादुरने अंग्रेजों की सहायता के लिअ गोरखा सैनिकों को भेजा। १८५७ के अगस्त के प्रारंभ में काठमांडू से ३००० गोरखे । अवध की पूरब में अजीमगढ और, जौनपुर में अतरे गोरखपुर के क्रातिकारी नेता महम्मद हुसेन सुन के मुकाबले को खडा था। जब अंग्रेज दोआब में लड रहे थे, तब बेनी माधव, महम्मद हुसन, और राजा नादिरखा ने अपने बलसे बनारस के आसपास का प्रदेश तथा अयोध्या की पूरब का गपू पूरी तरह फिर से हथिया लिया था। अंग्रेज अवध की ओर ध्यान देने का समय निकाले अिस के पहले ही, गोरखोंने क्रांतिकारियों को अवध की और पीछे धकेल दिया था। और कुछ दिनों में जंगबहादुर और ब्रिटिशों के बीच मशविरा हुआ और तीन सेनाओं अवध पर चढामी करने को सुसज्ज थीं। २३ दिसंबर १८५७ को ९००० गोरखाओं क साथ जगबहादुर आगे बढा। जनरल फॅक्स तथा रोपट मेक अक गोरी पलटन के साथ चढ आये । जिस तरह बनारस की अत्तर में क्रांतिकारियों का सफाया करती हुी ये तीनों सेनाों अवध में घुसने लगीं । २५ फरवरी १८५८ के आसपास नेपाली तथा अंग्रेज घाघरा नदी पार कर अंबरपुर को चले । रास्ते में अक जंगली अभेद्य दुर्ग था । असे छोड कर आगे बढना अंग्रेजों के लिसे खतरनाक था। तब गोरखों को अस किले पर धावा बोलने की आज्ञा दी गयी । असी सुसज्ज सेना