पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४३१

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अध्याय ७ वॉ] ३८९ [लखनझू का पतन A waaamwwwwwwwanmM पाठक; यह महान् व्यक्ति था, फैजाबाद का देशभक्त वीर मौलवी अहमदशाह । क्रांतियुद्ध की जलती मशाल हाथ में लेकर जब यह पास प्रदेश प्रज्वलित कर रहा था, तब लखनझू के गोरोंने असे पकड कर असे फाँसी का दण्ड सुनाया था। असे फाँसी बारिक में फैजाबाद के जेल में रखा गया था। १८५७ के तूफान ने असे वहाँ से अठाकर नेतृत्व के सिंहासन पर बिठा दिया ! यह राष्ट्रवीर मौलवी अहमदशाह स्वदेश और स्वधर्म की रक्षा के लिओ मैदान में अतरा था। राजसभा की वक्तृता से वह अपने हजारों देश • वासियों को मंत्रमुग्ध कर देता, जहाँ समरांगण में असकी वीरता की प्रशसा असके मित्रों तथा शत्रुओं के भी मुख.से निकलती थी। _जब कॅम्बेल तात्या को शासन करने के लिअ जा रहा था, तब असने ४००० सेना के साथ आशुटराम को आलमबाग में रखा था। तब से शत्रुसेना की दुर्बलता से लाभ अठाने के लिअ दिनरात अहमदशाह चेष्टा कर रहा था। सिस के पहले की बार नानासाहब के मोड-फिराव तथा कूटनीति से लखनझू की रक्षा हुी थी। लखन में पड़ी यह अंग्रेजी सेना पाडों के चंगुल में फंस गयी थी। लखनअ पर चढाी करने के लिये अंग्रेजी सेना गंगापार हुी थी, तब नानासाहब ने कानपुर पर चढामी कर दोआबमें लौट आने पर असे मजबूर किया था। किन्तु जिस चाल से लखनझुने निश्चयपूर्वक लाभ न अठाया । अिसबार तात्या टोपे की क्षमतासे प्राप्त अवसर से पूरा लाभ अठाने की अहमदशाह ने ठानी। शासनसूत्र यद्यपि अवध की बेगम के हाथ में था, फिर भी क्रांतिकारियों, राजा महाराजाओं को संगठित करने में असके अच्छे प्रयत्नों से भी सफलता न मिली । आपसी चढाभूपरी तथा असावधानता' के कारण मुट्ठीभर अंग्रेजोपर जोरदार हमला कर अनका सफाया करने के की अवसर हाथसे निकल गये थे। दिल्ली तथा कानपुर का पतन हुआ। फतहपुर की, वही दशा हुी और आसपास के प्रदेशों से हारे हुमे हजारों क्रांतिकारी लखन में जमा थे। किन्तु अवध में अपयुक्त होने के बदले अपने अधिका, 'रियों की आज्ञाओं का पालन करने में वे टालमटूल करते थे। और अब तो यह डर पैदा हुआ था, कि विजयोन्माद से फुले हुमे तथा नये आनेवाले