पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४४८

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अमिप्रलय ] . ४०६ [ तीसरा संड लिया था; किन्तु अपनी सेना की सम्धी शक्तिको पूरी तरह जान कर, कुँवरसिंहने अपनी वीरता, धीरज, तथा चतुरता के बूतेपर ही झगडा चालू किया । ___ मार्क कर पर हमला करने के लिओ अपनी सेना को विमागों में बाँटा । शत्रुकी तोपें भीषण आग अगल रही थीं किन्तु अन्हें बंद करने के लिये अस के पास अक भी तोप न थी; फिर भी • मार्क कर की पिछाडी पर धूम जाने में वह सफल हुआ ! कुँवरसिंह के विस चालसे शत्रु के सभी भिरादे मिट्टी में मिल गये, क्यों कि फिर असे अपनी तो इंटानी पडी। जिससे क्रांतिकारियों को, मानो, चढामी की सूचना मिली और विजय के नारे लगाते हुझे वे आगे बढे। अंग्रेजों की पिछाडी पर कुँवरसिंहने औसा दबाव डाला कि अनके हाथी तितर बितर भागने लगे। जीवित रहने की आशा पूरी तरह नष्ट हो जानेसे अन के महावत भी हाथियों के गले में चिपक गये और अन्य नाकर जिधर रास्ता मिला अधर भाग खड़े हुआ फिर भी मार्क कर कहता रहा ' ठहरो, अब भी विजय मिलेगी' क्रांतिकारियों की अगाडी के कुछ घर जो असने हथिया लिये थे ! किन्तु अस की पिछाडी साफ टूट गयी थी। ___ अधर कुँवरसिंहने आग लगाना शुरू कर दिया । असे देख कर मार्क कर आजमगढ की ओर पीछे हटने लगा। असने सोचा क्रांतिकारियों पर विजय न सही आजमगढ में बंद गोरों को सहाय पहुंचाने का काम तो करेगा । अस की तोपोने अिस बार अच्छा काम किया, क्यों कि कुँवरसिंह के पास अक भी तोप न थी। आधी रात में, लॉर्ड कर अपनी सेना आजमगढ पहुंचा सका । यह लडाभी, अस के लिओ चतुरता की चालें, कुंवरसिह की भूलें और वे अडचनें जिस का सामना असे करना पड़ा---भिन सब बातों पर प्रकाश डालते हु. मॅलेसन कहता है, "कुँवरसिंह व्यूहबाजी की अपेक्षा युद्धनिपुणता में अधिक चतुर था । असने चढाभी की योजना की बडी सुंदर रचना की थी, किन्तु अस पर अमल करते हुअ असने कभी बड़ी भूलें की। मिलननने असे जनपेक्षित बड़ा अच्छा मौका दिया था। कुंवरसिंह जो चाहे. असे कर सकता था । अंबराव में नाश्ता करने अतरौलिया के पास जब मिल.