पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४६५

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अध्याय ८ वॉ] ४२३ कुँवरसिंह और अमरसिंह कट गये ! शेष रहे सौ क्रांतिकारी जान हथेली में लेकर खुले. मैदान में शेर की तरह कूद पडे और नयी आयी मोरी सेना से भिडे । अन्त में जिनमें से तीन बच पायें, जिन में अक राणा अमरसिंह था; अब तक ओक सैनिक बनकर लड रहा था । कितनी ही रक्तपाती लडालियाँ 'पांडे । सेनालडी, कितनी खून की नहरें बही; किन्तु स्वाधीनता का ध्वज अबतक झुका नहीं। राणा अमरसिंह तो जैसे बॉके संकटों से बचा था कि कहते ही बनता है। अकबार तो शत्रु ने राणा के हाथी को पकड लिया, किन्तु राणा कूद पडा और गायब ! जिस तरह क्रांतिकारी चप्पा चप्पा भमि के लिओ झझते हु अपने पति के बाहर खदेडे गये। अब वे कैमुर की पहाडियों में पहुंच गये। पछा करनेवाले गोरों को अस प्रांतवालोंने हमेशा तथा यथाक्रम धोखा देकर क्रांतिकारियों की रक्षा की। ४ शत्रुने अिन पहाडियों में भी क्रांतिकारियों का भीषण पछिा किया। हर टीला, हेर अपत्यका हर चट्टान पर क्रांतिकारी झगडते रहे। मेक भी क्रांतिकारी, पुरुष या स्त्री. शत्र के हाथ न लगा; वह झुझते हुमे अपने देश और धर्म के लिओ खेत रहा। श्री कुंवरसिंह के रनवास की डेढ सौ स्त्रियों ने, अब कोमी चारा नहीं है यह देख कर, अपने हाथों अपने को तोपों के मुंह बॉध लिया और अपने हाथों अन्हे डाग कर अड गयीं-हुतात्मता के अनंतत्व में विलीन हो गयीं! . विदेशी शत्रुभोसे जन्मसिद्ध स्वाधीनता के लिअ बिहारने जैसा प्रखर तीखा झगडा किया। ___और राणा अमरसिंह शत्र के हाथ न लगा! राज्यश्री ने असे छोड़ दिया, किन्तु अस के अदम्य 'आत्मतेज ने असे कभी न छोडा । अमरसिंह का आगे क्या हुआ ? अपना शेष जीवन असने कहाँ बिताया-घबडाया हुआ अितिहास गूंजता है क-हाss! m x मॅलेसन कृत सिंडियन म्यूटिनी खण्ड ४ पृ. ३४४