पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४७

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अध्याय २ रा], [ कारणों का सिलसिला प्रतिज्ञापूर्ति के दिन को, जबतक हो सके, नजदीक लाने को उत्सुक हुआ था। क्यों कि, पलासीमें क्रातियुद्ध का बीज बोकर ही अंग्रेज चुप न रहे, उन्हों। ने भारत भरमें इस वृक्ष को लहलहाता हुआ देखने के लिये अनथक चेष्टाएं की। बनारस, रुहेलखण्ड तथा बंगाल में वारन हेस्टिग्मने वृक्ष की अच्छी तरह देखभाल की। मैसूर, असई, पुणे, सातारा तथा उत्तर भारतकी उपजाऊ भूमिमें वेलस्लीने वही किया। किन्तु यह सब बिना असीम चेष्टाओं के थोडे हि बना? क्यो कि इस भूमि को पहले जोतना आवश्यक था--हॉ, मामूली हलसे नहीं, तलवारों तथा अदूकोसे । पुणे के शनिवारवाडेपर, सह्याद्री की दुर्गम चोटीपर, आगरे के किलेपर और दिल्ली के सिहासनपर ये मामूली हल किस काम के १ जब यह पथरीला भूभाग खोदकर चूर्ण चूर्ण कर दिया गया, तब भूलसे जो कुछ छोटे टीले बच गये थे उनका अत्याचारो से सफाया कर दिया गया। और इस जोताइमें अंग्रेजों के अन्याय्य तथा विश्वासघात के प्रहार से छोटे नरेश धूलमे मिल गये। __ अंग्रेजोंने जिन अक्लके दुश्मन नरपशुओंके बलपर इन सब विजयोंको प्राप्त कर इन प्रदेशोपर कब्जा कर लिया उन्हेंभी वे पूरी तरह खिलातो पिलाते न थे, न उनकी पीट सुहलाते थे। पूरे सौ सालोतक अग्रेज' देशी सैनिकोको जुल्म जबरदस्ती की चक्कीमें पिसते जाते थे। मराठों याः निजाम के सैनिक जब महत्त्वपूर्ण लडाइयोंमें विजयी होकर आते तब उन्हें पारितोषिक तथा जागीरे मिला करती थीं, जहॉ कपनी सरकारने उनके सैनिकोंको मीठे धन्यवादके सिवा कुछ भी न दिया था। जिन सिपाहियोंके केवल वचनसे हिंदुस्थान अंग्रेजोके अधीन हुआ उनसे सेनापति आर्थर वेलस्ली इतना हीन बरताव करता कि यदि कोई सिपाही घायाल हो जाय तो उसे रुग्णालयमें पहुँचाने के बदले तोमसे उद्धा देता था। इस तरह जब अंग्रेज स्वय ही हिंदुस्थान भरमे असतोष तथा द्वेष का बीज बोते जाते थे, तब उनके यलों का पूरा फल प्राप्त होने का समय भी जल्द आ बगा। हिंदुस्थानकी स्वाधीनतापर ऑच आनेवाली है, यह बात पुणे के नाना फडनवीस तथा मैसूर- के हैदरसाहबने भॉप,