पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४८

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ज्वालामुखी] १६ . [प्रथम खड लिया था। उस दिनसे इस संकट का डर अस्पष्ट ही क्यो न हो हिटी नरेशों को सता रहा था, और इसका प्रत्यक्ष परिणाम वेलोर के विद्रोह में दीख पडा। वेलोर की यह बगावत १८५७ के प्रचड उत्थान का पूर्वप्रयोगही (रोहर्सल) था। जिस तरह रगम चपर प्रत्यक्ष नाटक खेले जाने के पहले कई पूर्वप्रयोग होना आवश्यक होता है उसी तरह इतिहासमेंभी सपूर्ण स्वाधीनता प्राप्त करने के पहले (खेल के सभी साधनोको जुटानेके लिए) बगावत के रूपमें ऐसे कई पूर्वप्रयोगो का खेला जाना आवश्यक होता है। इटली में १८२१ के प्रारभसे ऐसे पूर्वप्रयोग होते थे; और १८६१ में उनका खेल इतिहासके रंगमचपर सफल हुआ। १८०६ की वेलोरकी बगावत एक छोटासा किन्तु पूर्वप्रयोगही था। इस उत्थानमें जनता और राजपुरुषोंने सैनिकों को अपनी ओर कर लिया था। बाजारोंम फकीरो का स्वॉग भरे कई सौ प्रचारक प्रचार कर रहे थे। विद्रोहके चिन्हके नाते रोटियों को भी उस समय बॉटा गया था। हिंदू और मुसलमान दोनो धर्म तथा स्वातत्र्यके लिए एक होकर उठे थे। किन्तु यह पहलाही पूर्वप्रयोग होने के कारण इस उत्थान मे उन्हें अपजश मिला। चिता नहीं ! आखरी प्रयोग (खेल) के पहले 'एसे कई पूर्वप्रयोग दुहराये जाने चाहिए। हॉ, उनमें काम करनेवाले नट जीवटसे पूर्वप्रयोगोको जारी रखे, अपजशसे हार कर पूर्वप्रयोग बढ न होने पावे। और ऐसाही नाटक खेले जाने के लिए हिंदुस्थान और इग्लंड दोनों राष्ट्र दिनरात लगे रहे थे। और इस खेलके अभिनेता, जो रूपरचना (मेकअप) कर रहे थे, भी कोई साधारण, दरिद्र और बुडू नहीं थे। तंजावर की गद्दी, मैसूरकी मसनद, रायगडका सिंहासन, दिल्लीका दीवान-ई-खास (वहाँके बहादुर राजपुरुष) ये थे उस महान् खेल के चुने हुए अभिनेता। और इन सबपर शान दिखाने के लिए ही मानो १८४६ मे हिंदुस्थानके किनारेपर डलहौसीका पौरा पडा। बस, अब पलासीके रणमैदानपर, जिसके लिए लोग शपथबद्ध हुए थे, उस कार्य का प्रारंभ होनेम बहुत समय नहीं रहा था! ऊपर बतायी कारण-परपरासे यह स्पष्ट प्रतीत होगा कि डलहौसीके भारतमे पदार्पण करने के पहले समूचे भारतम असतोपका वीज बहुन गहरा