पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४९५

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अध्याय १० वॉ] ५३ रानी लक्ष्मीबासी www की सहायता के लिखे कूच कर रही है ।- अत्तर मिला । पहरेदार ने जाने दिया। रानी आगे बढी । मेक गोरे प्रहरी का भी अिसी तरह टाला गया । अन के शरीर-रक्षकों में अक दासी, बेक बाग्गीर, और १०१५ घुडसवार थे। जिस तरह यह 'सेना शव की छावनी के बीच से हो कर कालपी तक सुरक्षित पहुँच गयी। किन्त अन के अन्य घुडसवा को सदेह में अंग्रेजों ने रोका और वहाँ खूब ठन गयी । मोरोपत तांबे, घायल होने पर भी, दतियातक निकल गये, किन्तु वहाँ के देशद्रोही दिवान ने अन्हें गिरफ्तार कर लिया और अंग्रेजों को सौप दिया । अंग्रेजों ने मोरोपंत तांबे को फाँसी दिया ! अच्छा तो, लक्ष्मीदेवी; अब तुम्हारे घोडे को अंडी दो। क्यों कि, ले. बॉकर, चुने हुआ घुडसवारों के साथ तुम्हें पकडने। के हेतु, पीछे से घोडा अछालता आ रहा है । और हे अभ्व ! तुम्हारे पीठ पर होने वाले पवित्र निधि के कारण भाग्यवान् । पूरा बल लगा कर दौडो! भारत के मानव भले ही देश द्रोही बने भारत के जानवर, तुम तो श्रीमानदार रहोगे ! हे रात्रि ! रानी लक्ष्मी तथा अन के शत्रुओं के बीच अंधकार का परदा खडा करो। देखो अश्व ! तुम वायु से भी अधिक वेग से दौड रहे हो, लक्ष्मीदेवी को फूल की तरह ले जाओ । मार्ग ! तुम किसी तरह की रुकावट घोडे को न होने दो। हे तारो ! शत्रु के लिअ प्रकाशित न हो। हॉ, भितना प्रकाश रहे कि तुम्हारी अमृत-वर्षिणी किरणों से यह कमल के समान सुकोमल सुदरी मार्ग तय करने में अत्साहित हो । अब तो अषा आ गयी, सो हे वीर लक्ष्मीदेवी ! वायु की पाखों पर रात भर तुम अडती चली आ रही हो ! भाडेर गाँव के पास कुछ विश्राम करो ! वहाँ का लबरदार तुम्हारे प्यारे दामोदर को खिलायगा ! । कलेवा कर के तुरन्त कालपी के मार्ग में रानी चल पडीं । किन्तु पीछे से यह गर्द कैसे अड रहा है ? देवीजी ! और तेज करौ घोडे को, पीठ पर दामोदर को सम्हालो और आगे बढो । अपनी तलवार सवारो। देखो, बॉकर पास आ रहा है । ले नीच, पीछा कर ने का यह पारितोषिक ! बिजली सी तलवार झुठी; अक लम्बी चोट और बीकर लडखडता घोडे से गिर पड़ा । पीछा करने