पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/४९९

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अध्याय १० वॉ] ४५७ । [रानी लक्ष्मीबानी बनाने और अस के राजमहल का विध्वंस करने और पैशाचिक लट, संपूर्ण आमकाण्ड, तथा दुष्टता पूर्ण प्रतिशोध लेने। * रियासत खालसा में मिलायी गयी। जीते हुअ प्रदेश में 'शान्ति' रखने के लिओ विटलॉक महोबे में छावनी डाले रहा था। वास्तव में असने अपनी मुहीम पूरी की थी। बुद्देलखण्ड का पूरबी हिस्सा असने जीत लिया था और अक दो छोटी जगहों को 'शान्त' करने के लिओ कुछ दस्ते भेजे गये थे। सो, अव विटलॉक को छोड, फिर मेक बार, शूर झाँसीवाली रानी के पवित्र चरणों का अनुसरण करें। अब आशापूर्ण रानी'ने पेशवा की सेना के साथ कालपीमे ४२ मीलों पर होनेवाले कॅचगाँव को कूच किया। किन्तु, मालूम होता है, रानी की सूचना के अनुसार सेना की व्यूह-रचना रावसाहब ने न की थी। ध्यान रहे, रावसाहब या तात्या टोपे को पूरी तरह प्रबंध करना भी असम्भवसा था । यद्यपि अन के पास बॉदा का नवाब, शाहगढ नरेश, बानापुर के राजा, ये सब मेक ही झण्डे के नीचे अिकठे हुमे थे फिर भी एक विशाल सौनिक सगठन के अंतर्गत अनुशासित हो कर नहीं आये थे, जो संगठन मेक हृदय से संचालित हो, अक निश्चित योजना और विधान के अनुसार चले और कडा सैनिक अनुशासन और आज्ञाकारित्व हो। हरओक अपनी योजना बनाता, जिससे किसी की योजना पर पूरा अमल न होता, जहाँ शत्रुदल के नेताओं में कोसी झगडा न था; संगठन व्यवस्थित औ

  • सं. ४८. राव के साथ किये गये अिस अन्याय के विषय में, मले. सन को मानना पड़ता है, कि "विटलॉक के सैनिकों पर अक भी गोली न चली, तो भी असने निश्चय कर लिया था कि अस नाबालिग राव को बागी माना जाय । अिस नीचता का कारण यह था कि गोरे सैनिकों को अन की कठिन लडाअियों तथा चिलचिलाती धूप में कष्ट झुठाने का पारितोषिक देने की सामग्री किरवी के खजाने में भी । वहाँ के तहखाने आदि में अममोल चुने हुसे जेवर तथा हीरे पड़े थे। जिस सपत्ति के लालच में यह अन्याय किया - गया"-के और मॅलेसन कृत अिंडियन म्यूटिनी खण्ड ५-पृ. १४०-१४१.