पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५२४

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अस्थायी शान्ति ] ४८० [चौथा खंड कुछ नहीं जानता ! जेकब ने नेतामों को पकड़ने की अनथक चेष्टा की। कभी लोगों को, बारी बारी से, संदेह में बंदिशाला में लूंसा; किन्तु असे अस विशाल और विकराल षडयंत्र का तनिक भी सुराग न मिला । अक क्रांतिनेता को जब पकडा जा रहा था तब अपने हाथ के दोषी पत्र के टुकड़े कर वह असे मिमल गया-पकडनेवालों के सामने ! की लोगों को तोपों से अडा दिया गया; मन में से मेक पहली बार घायल हुआ, मरा नहीं; तब वह स्वयं स्थिर खडा रहा-ठूसरी बार तोप से झुड जाने के लिये। तब जेकम अस के पास जा कर बोला:-मुझे तुम पर तरस आता है तुमको धोखें से किसी ने बलवे में शामिल किया होगा। सो, तुम यदि कुछ विद्रोहियों के नाम बता दो तो तुम्हारे प्राण बच जायँगे।" किन्तु अस महान् वीर ने, धैर्य के साथ अपने हटे अंभों का मसहनीय दुख सहा और " असने मेरी ओर (जेकब ) घणा. युक्त क्रोध से देख कर स्पष्ट शब्दों में कहा 'मैंने विद्रोह किया; मैंने किया।' किसी का भी नाम न देते हु वह मडा और मत्युदात्री तोप के सामने उद कर खडा हो मया। दूसरे सेक क्रांतिकारीने तोप दगने के पहले अपने मेक नेता को स्मरण किया। यह देख मेक सरकारी कर्मचार्ग, जो वहाँ खडा था. चुपचाप खिसक गया और शहर में होनेवाले नेताओं तथा अन्य कार्यकर्ताओं को सचेत किया। तब गोरे अधिकारी अस नेता को, जिस का स्मरण किया गया था, पकडने के लिओ अस की खोज करने लगे किन्तु वह तो कोल्हापुर के बाहर जा चुका था और सुरक्षित था। यही आपसी श्रद्धा षडयंत्र का काम चालू रखती, अलम अलग टोलियों और दस्तों को संगठित रखती और असमें किसी तरह की रुकावट या गडबडी न पड़ने देती। जहाँ कोल्हापुर में ये घटनामें हो रही थी तब वहाँ बेलगाँव में भी १०. अगस्त के आसपास विद्रोह के लच्छन दीखने लगे; किन्तु ठीक समय पर सौनिक नेता ठाकुरसिंह तथा नागरिक-प्रमुख मेक साहसी मुनशी को पकडा गया। साथ साथ अक गोरी पलटन भी भेजी गयी। बेलगाँव और धारवाड का!

  • सं. ५० । सर जॉर्ज ले गॉद जेकब कृत वेस्टर्न भिंडिया.