पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५५६

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अस्थायी शान्ति] ५१२ [चौथा खंड ढलान ! जैसी दशा में तात्या और रावसाहब हथियार डाल देते, तो भी बुन्हें कौन दोष लगाता? किन्तु, धन्य हैं वे वीर ! जैसी दशा में भी अन्हों ने झुकने की न सोची । मेक अंग्रेज ग्रंथकार आश्चर्य से थकित हो कर लिखता है:-'किन्तु ये जैसे दो व्यक्ति थे, जो अन के जीवन के किसी प्रसंग के समान शांति, धैर्य तथा नयी नयी सझ से अिस प्राणांतिक संकट का सामना डट कर कर रहे थे।"* दिसंबर ११ को तात्या जंगल से बाहर निकला और अंक किलेदार से कुछ सामग्री जुटा कर सीधे अदयपुर को चल पड़ा। किन्तु तुरन्त की अंग्रेजी सेनाओं अस पर टूट पड़ीं, जिस से असे फिर जंगल में जाना पड़ा। अब अक सप्ताह से अधिक टिकना तात्या के लिओ असम्भव-सा हो गया था और स्पष्ट था कि असे झुकना पड़ेगा। क्रांतिकारी नेता भी आपस में चर्चा करने लगे, कि अब संघर्ष समाप्त कर दिया जाय । अब वह जंगल न रहा था; " चारों ओर से खदेडे हुसे और बंद किये हुओ मराठा शेर का जंगला था । सब ओर से अंग्रेजी सेना के पाश अस की गर्दन को कसते जा रहे थे तब भी अस मराठा वीर ने लडाभी स्थगित करने का विचार तक न किया। अक दिन वह रावसाहब के साथ प्रतापगढ़ की दिशा में बाहर निकला। तात्या की सेना बाहर निकल भी न पायी थी, कि मेजर रॉक की सेना अस के मार्ग म ही आ टपकी । तात्याने अिधर अघर की न सोची और सीधे रॉके पर टूट पड़ा और जैसे जोरसे, कि रॉके के सैनिक हैरान हो गये। जिस प्रकार वह बंगला तोड कर फिर अक बार वह मराठा शेर कटघरे से बाहर कूदा; अग्रेजी सेनापति लज्जा से सिर झुकाये हाथ मलते रह गये। २५ दिसबर १८५८ को तात्या टोपे बॉसवाडे के जगल से बाहर हुआ। जिन्हीं दिनों शूर वीर शाहजादा फीरोजशाह भी अपनी सेना के साथ , तात्या की सहायता को आ रहा था। * मिर्जा फिरोजशाह ने गगा

  • मलेसन कृत सिंडियन म्यूटिनी खण्ड; ५ पृ. २४७ *सं. ५५ । लंदन टासिम्स २० मी १८५९ का अक अद्धरण.