पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/५६४

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अस्थायी शान्ति ] ५२० [चौथा खंड rammar में अडचनें पैदा होती हैं; समूचा देश बाद में ही अठता है। जिस से स्पष्ट होगा, क्रांतिनेताओं ने तनिक भी अतावली न की थी। भितनी सुविधाओं होने पर भी जो न अगे, वे कभी विप्लव करने के योग्य होते ही नहीं। तो फिर यह क्रांति असफल क्यों हुभी ? मिस विषय में छोटे मोटे कारणों का विवेचन पहले योग्य स्थानों पर किया हो गया है, किन्तु अक महत्त्वपूर्ण कारण यह था:-यद्यपि क्रांति की सिद्धता पर्याप्त तथा पूरी तरह की गयी थी; पहला विध्वंसक कार्यक्रम भी बहुत अच्छी तरह निभाया गया; किन्तु अस के रचनात्मक कार्यक्रम का क्या ? अंग्रेजी शासन नष्ट करने के विरुद्ध कोमी भी न था; किन्तु फिर वे ही पहले का आपसी घातक झगडे, वे ही मुगल, वे ही मराठे । वही पहले का ढला हुआ अंदाधुंद और वैर का वायुमण्डल, यही सब फिर भारत में आने का डर हो, तो अस के लिये सर्वसाधारण अज्ञ जनता को अपना रक्त बहाने की अतनी आवश्यकता प्रतीत न होना स्वाभाविक ही था। क्यों कि, असी तानाशाही और अन्यायपूर्ण शासनसे भून कर, पागलपन के दौरे में, अस जनता ने विदेशियों को अपने सिरपर बिठा लिया था। क्रांति का प्रथम भाग-विध्वसन-बड़ी सफलता से थूरा किया गया । किन्तु तुरन्त जब विधायक, रचनात्मक भाग का प्रारंभ हुआ तो गतमेद, आपसी डर तथा अविश्वास की धूम मची। जनता के अतःकरण को आकर्षित करनेवाला कोसी नया ध्येय-नया आदर्श अत्यंत स्पष्ट रूप से लोगों के सामने रखा जाता, तो क्रांति की प्रगति तथा अन्त भी प्रारंभ के समान ही यशस्वी और प्रभावपूर्ण परिणामकारी हो जाता । ___ कम से कम लोगों को जितना भी पूरी तरह जचाया जाता, कि प्रलय के बाद तुरन्त फिर से नया सृजन, नया निर्माण होता ही है, तो भी क्रांति यशस्वी हेन्ती । किन्तु, निर्माण की बात तो दूर, संहार का, प्रलय का कार्य भी भारत पूरीतरह सफल न कर सका । और असका कारण ? कारण यही, कि राष्ट्र का गला, अपने निजी स्वार्थ के लिभे, घाँटने की नीच वृत्ति ही भारत से पूर्णरूपेण नष्ट नहीं हुी थी । क्रांति की असफलता के प्रमुख दो कारण