पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/६१

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इस परिवारको है। गुलत्रकी कॅटीली शाखाओको कहां पता होता है की चसतमे अपनी महकसे सबको मस्त बनानेवाला फूल - उसकीही कोखमे खिलनेवाला है? भलेही शाखा इसे न जाने, किन्तु हिन्दुभूमिके वमतका आगमन होतेही फूल ने तो अपना सिर ऊँचा किया। १८३५ ई मे भागीरथीवाईन वीरकन्या लश्मीको जन्म दिया। उसका नाम मनूबाई रखा गया। मनू तीन चार वर्षोकी हुई तब यह तबि परिवार काशी छोड व्रह्तवर्तमे वाजीराव के पास आ गया। वहा मनू सबकी लाडली बनी, उसे सब 'छवेली' कहते थे। राजकुमार नानासाहब और यह फूहड छवेली। जब ये दो बच्चे अल्हडपनसे एक दूसरेको चिपकते होगे सब व्रह्तावर्तके लोगोकी वाछे खिलती होगी। नानासाहब और छवेली को गखशालामे तलवार चलानेकी शिक्षा लेते हुए देख़कर किसकी आँखें अत्यानदसे न चमकती हो? नानासाहब और लक्ष्मी इसी शिक्षाके बलपर आगे चलकर स्वराज्य और स्वधर्मकी रक्षामे डटनेवाले जो थे।हाँ, जिन्होने इन बालकोकी शस्त्र-शिक्षाकी उवति देखनेका सौभाग्या प्राप्त किय था, वे उनका उज्ज्वल भाविश्य न देख पाये, जहॉ उनकी तलवागेका कौशल रणक्षेत्रम देखनेका सौभाग्य जिन्हे प्रप्त हुआ वे उनकी बचपनकी बाल-लीलाऔको देखनेसे विचित रहे। चाहे जो हो; ये चर्मचक्शु भले ही उस हश्य को देख नही सके, कल्पना का एनक लगाते ही हम अतीत की उनकी बाल-कीडाको हु-ब-हु देख सकते है। और साहब और रावसाहब (नानाका चचेरा भाई) जब अपने शिक्षाकके नेत्तत्वमे पाठ पढ़ते थे तब छवेली भी उन्हे ध्यानसे देखती थी और कुछ लिखना-पढ़ना भी उन्की देखादेखी सीख गयी। शथीपर हौदेमे चढ़ नानासाहब जाते हो तब छोटी छ्वेली लडसे कहती 'मुझे भी उठा लो न भैय्या। *कभी नानासाहब उसे ऊपर उठा लेते और हाथीपरसे हाथियार चलानेकी शिक्षा देते। कभी घोडेपर चढ़ नाना लक्ष्मीकी बाट चोहते खडे रहते, इतनेमे लक्ष्मी भी कमरमे तलवार लटकाए, वायुसे बिखरे वालो को सॅवारदी, घोडा दौडाती वहां आ धमकती, किन्तु अपनी