पृष्ठ:१८५७ का भारतीय स्वातंत्र्य समर.pdf/७३

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अव्याय ३ रा] ४१ [नानासाहब और लक्ष्मीबाई इस प्रकार के असाधारण समारोह की बडी भारी सिद्धता नानासाहब के राजमहल में हो रही थी, तब उनकी बहन छवेली थोडेही हाथपर हाथ धरे बैठी रही ! उसके सामने भी उसी न्याय अन्याय की समस्याने अपना जबडा खोला था ! स. १८५३ में उस के पति की मृत्यु पर जब उसने दामोदरको गोद लिया, तो दत्तक लेनेके अधिकार को ठुकराकर अंग्रेजोने ऑसी को जब्त किया। किन्तु झॉसी ऐसी मामूली रिसायत न थी जो मात्र कहने भरसे या एक पत्र से हडप ली जाय ! वहाँ नागपुर की बंका नही, नानासाहत्र की प्यारी बहन छवेली रानी लक्ष्मीबाई राजदण्ड सँवारे थी; उसने ऐसी आज्ञा को कूडे में फेक दिया । अंग्रेजों की यह कठोर और नीच धूर्तता की कार्रवाई को देख उस के आत्माभिमान तथा प्रतिष्ठा पर चपत पडी3B इस अपमान से उस के क्रोध की आग धधक उठी और उसने साफ कह दिया " क्या में झॉसी छोडूं ? मै नहीं छोड़ेगी। जिस में हिस्मत हो वह एक बार जरा आजमा तो देखे ! मेरा झॉसी नहीं दूंगी !!* LA. ... SALI

  • डलहौसीज बॅडमिनिस्ट्रेशन वाल्यूम २