पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१४

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और छोटो से छोटी कौम को भी प्रात्मशासन का स्वामायिक अधिकार प्राप्त है और जैसाफि एक बार श्रीयुत सकलासयाला ने कहा था "वर्तमान साम्राज्यवाद के पृष्ठपोषक गलैट में भी मुश्किल से ६० हज़ार मनुष्य होंगे" परन्तु हम इस बात का गम्भीप्ता पर विचार करना चाहते हैं फि माप्त की पूर्ण स्वाधीनता को इगल का क्या कोई भी उदार से उदार दल सहन कर सफेगा। प्रोपनिवेशिफ स्वराज्य तो एक ऐसी सरल शोज महाँ समस्त जातियों का और सास कर प्रेट प्रिटेन का व्यापारिक स्वार्थ अधाप रूप से चल सकता है, इस के सिया नट बिटम की राजनीतिक मैत्री भी ससका एक अनिवार्य रूप स लिये प्रोपनिषेशिक स्वराज्य का समर्थन गलैण्ड के जन वल से होमा कदाचित सम्मष हाता, परन्तु पूर्ण स्याधीनता का पेय तो प्रेट ब्रिटेन के विध्यंत का प्रश्न है, हम नहीं समझते कि पटेम का खन वल इस प्रश्न का समर्थन कर अथवा उदासीन भी इसकेगा । फिर, भारत के शासम में रगर का जन वन बहुस दूर का हाथ रमता है और भारत सरकार को उसका स्याह सफेद करने का प्रसाधारण अधि- कार प्राप्त है इस के सिवा वह पुरी तरह से इएिउया हास केबन्धम में वत्यो हुई है जो मिघारित रीति से इधर उपर हो ही नहीं सकता । तव एक ही बात स्पएरे कि भारत वर्ष को इस पूर्ण स्वाधीनता की घोपया की पूर्ति के लिये विरिश सत्ता

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