पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१५२

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नैतिक चेष्टा ना होने याली है जैसे कि प्राचीम स्पेन फा सिम्बाध लुट जाय और यह शेक्सपियर के समय का, पफ पड़े मारी अलाशय में एक इंस, के ममाम रह जाय तो क्या यह वर्तमान प्रेट ब्रिटेन सहम कर सकेगा । परन्तु यह घटना सम्मष नहीं है, यह बात तो सोधी ही नहीं आ सकती । यहाँ राज मीति और इतिहास का मेल करना पड़ता है। इ ग्लैन्ड ने अपने उपनिवेश खोये और नये पसाये या जीते भी है। महान् अमेरिका ज्यों ही उसके हाथ से गया-महान् भारत उसकी गोद में प्रारब्धवाद की सरह कर पड़ा । परन्तु प्राज प्रध्यो क राष्ट्रों में जैसा माप पैदा होगया है ब्रिटेन का मारत कास्त्रो कर फिर से कोई राष्ट्र बनाना सर्वथा दुरुह है। प्रेट ब्रिटेन के भारत को सामाज्य में मिला लेने पर यदि पूर्व और पश्चिम में यह सघातिक मेल हो गया होता जो उनके राममंतिक स्थाओं पर्व आर्थिक समस्यायों को मित्र भाव से पक करसा सो भाशा होती कि यह प्रेट ब्रिटेन का सामाज्य अमेरिका के संयुक्त राज्यों जैसा पफ प्रचार सामाज्याम्तर्गत संघ बन जाता। परन्तु अंग्रेजों की म्धार्थ नीति और झूठी मगरूरी मे ऐसा न होने दिया। अब ऐसा प्रतीत होता है कि र सतानि याद ही हेस्टिंग्स और क्लाय की यह अप्राकृत राम- मण मंगुर व्यापार सामाग्य गिर गया था। समय सब का शिक्षक है पर इतिहास यह गुरु है जो पतन 1