पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१५४

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(१४३ ) होहा है, यह गलैपर जो एक हाथ से पृथ्वी भर के भविष्य बावको दमासे पकदमा चाहता है यह दुसरे हाय से उम मारत को सदाके लिये पकड़ रखना चाहता है और प्रत्यात प्राचीनता को ओर अपनी तमाम शक्तियों से भारष्ट है । उसके सामने यह प्रश्न है कि यह एशिया में स्वेच्छाचारी रहे और भास्ट्रलिया में प्रजा सत्ता का समर्थक । पूर्व में मुस्लिम अन्ध विभ्यासों और मन्दिरों का संरक्षक और पच्छिम में स्वायत्त शासन का प्रासक, ऐसी दशा में यह तभी सफल हो सकता है कि या तो यह पूरा सहिष्णु और दूरदर्शी-या परो धर्जे का धूर्त हो मेद है कि रंगर में प्रथम के गुण नहीं । मारत को अंग्रेजी साम्राज्य प्राप्त करना किसी भी तरह रचित मदीं, क्योकिाटने कमी मी भारत में उपमियेश स्थापित नहीं किया। ये घरजीमिया और म्यूड गलैगर में उप निषेश फायम फरमे ही गये थे । पर घे श्राम स्यता प्रना संघात्मक प्रबल राज्य है, पर भारत से सो घे व्यापार करने माये थे और अकस्मात ही उस महादेश को सामाग्य की माघोनता में ले आये । लार्स मेकाले में एक बार कहा था- 'भो भप्रेत इतिहास में रुचि रखते है उनमें से प्रत्येक इद मानने को उत्सुक होगा किस प्रकार मुट्ठी भर अंग्रेजों ने सार के एक सब स बड़े साम्राज्य को कुछ ही यों में अपने पधिकार में कर लिया। जबकि अपने घर से अति दूर थे। 1