पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१८७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१७४ ॥ 1 1 1 'लिवरपूल और मैंचेस्टर को मिल खुलने से पहले भारतवर्ष के देव-देवियों द्वारा पनी मलमल प्रथया वस्त्रों से शरीर को अहस करके ग्रहोमाग्य मामते थे। रोम के पावगाह प्रगस्टस, सीजर के जमाने में रोम की रामियों को दाके की मममन के आगे कुछ माता म था। पतम के ममय में साक्टर टेलर ढाके में ऐसा बारीक सूत देखा था जो लम्बाई में ११५६ मा था, पर तौल में केवल २२ प्रेम था। इस हिसाब से १ पौर से में २५० मोल लम्बा सूत आज कल के हिसाब से १२४. नम्बर का होता है । यह सूत बिना मशोन के मामूलो सोभे साघे ताप पाले लकप्टी से घरों के ही बनाया जाता था। यह सब शिल्प और व्यापार क्या हुमास सत्याना कारण अत्याचार-परि पूर्ण है। इग्लैएट पर बड़े बड़े कर सगाये गये मोर भारतीय घस्त्र पहनने वालों को कड़ा दया देने के लिये कानून बनाये गये। राज-दर में मातो पता पहन फर जामे की मसत मुमानियत कर दी गई। इस प्रकार भारत की रक्षा के बदामे प्राकर अंगरेजों ने भारत के शिर का हत्या का। बंगाल के जुबाहों पर इतना 'अत्याधार हुमा किसे अपने अंगूठे कार कर देहातों में बस गये। इस कला को मर फरने में और भयुक उपायों का अवलम्बन किया पया। परिणाम क्या हुमा कि मेस्टर और लिवरपूल का माग्य जाम उठा । सरकार ने . 1 ममी N. there 7