पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/१८६

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शानिक को ग्राम कल अपने घर होने कीरा मारत ! ममवान् ने आज यह दिम भी दिये कि वारा जापान भी का माल अफगानिस्तान, परशिया का राह से होता हुमा मामका की सम्पूर्ण संसार में घूम थी यूरोप के बड़े बड़े मर्मनी के हाथ में था। और मी ममा देखिये कि वैमानिक हर्षि के कुछ ऐसे परीक्षणों का फल भारत की मांग नहीं गिएड की पूरी करने के लिये प्रयल किये जाते हैं। भारत बोट धागे की कपास पैदा करता है और उसके फरयों के छिपे वह उपयुक्त है, परन्तु का शायर को सम्ये धागों की पास चाहिए और उसकी यथेष्ट पूर्ति अमेरिका और मिम ना कर सकता इस लिये भारत में लम्बे भागे की कपास पैदा होने का प्रयत्न किया जा हा है। पर यह हमारी उउपज पर्या भीम प्राफांक्षाओं की पूर्ति इलिये उपयुक बमाई जाती है। उधर तैयार माल के बनाने बान्न विदेशी सरकार को सुगी की घूस देवर मजे में सका मार रहे है। अब मैं आपात किसे सामान को हिन्दुस्तान के बाजारों में धरा पातासो कमेले में भाग लग जाती है। कि भारत के बच्चों को वस्त्र और सामान दे। भबसे केवल १0p,१५० वर्ष प्रथम भारतवर्ष का व्यवसाय पमा बढ़ा था 1 रेल सन दिनों महीं थी, पर मारत भारयान हारा यूरोप पर पता था । डाके और बन्देरी की 1 1 इस योग्य तिमा ।