पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२०२

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( १६७ ) से सुरक्षित रह कर मृत पति की (ओ परियार में सम्मिलिस हो) सम्पत्तिका कुछ भी उत्तराधिकार नहीं है । आपस्तम्भ मावा के स्त्री घन (पासूपण प्रादि) का उसराधिकार उसकी फम्या को देता है। मनु मे कुमारी बहनों के लिये प्रत्येक माई को अपने हिस्से का कीयाई देने का विधान किया है। .६.११%) इसके सिवा किसी भी अनाजार से यदि कोई पुरप किसी को फुसला कर म्पमिजार करे और उस व्यनि- धार की सम्ताम को प्रसवाया स्त्री के सिर पटके तो ऐसी नाजुक स्थितियों के समय मनस्यो भार्य फामम निर्माताओं मे अतिशय क्षमा मोर उदाता पूर्वक उन मिरपराध सम्तानों को पुत्र कह कर उनके अधिकारी मर्यादा पाँधी है-जिसका अंग रेशी जुन और तामसी कानों में कहीं जिम महीं है। मीर केवल मिसके ही कारण नागार होकर गर्मपात भीर मा हत्या के खिठ मोर रोमांसफारी फापर मिस्य होते हैं। यहाँ पहवात भी पाद रसमे योग्य है किम्बन्ध में जहां ध्यमि- भारको पाप मही मामा माता, ध्यमिवार की सम्वान के लिये कामनम Fष समीते कर दिये गये हैं। और उस दोर्षका साभाप्य समझ कर पर्दा की जनता में भी कद प्रपन्य श्रीर सुविधाएं उनके लिये कर दी। पोष जो इस से उतर कर है यह मादक प्रयों और रूप से प्रचार करणे देने के सम्बन्ध में