पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२१

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1 । (४.) कोई होही नहीं सकता था।.किन्तु उस पुरुप ने भाग्य के साथ साज़िश करके आपकी और मेरी इच्छाके विरुद्ध मुझे यहाँ- भर्गकर जिम्मेवारी के स्थान पर टकेत दिया। आपने मुझे यहाँ इस धर्म संकट में डाल दिया है क्या इस के लिये मुझे आपके प्रति कृतज्ञता प्रकट करनी चाहिये ? किन्तु आपने मेरे ऊपर जो विश्वास प्रकट किया है यद्यपि मैं अयोग्य है तो भी उसके लिये मैं पापका कृतज्ञ हूँ। एशियाका महत्व । आप यहाँपर बमारे सामने उपस्थित कितने ही प्रत्या- वश्यक राष्ट्रीय प्रमापर विचार करेंगे और सम्भव है कि आप . के निर्णय ऐसे हो जिन से भारतीय इतिहास का मार्ग ही बदल जाय । लेकिन केवल इसी देशके मिवासियों के सामने प्रश्न नहीं उपस्थित है। सारे संसारके सामने कठिन समस्या उपस्थित है और प्रत्येक देश और उसके निवासी परिवर्सम काल से गुजर रहे है। विश्वास का युग बीत गया और प्रत्येक बात पर प्रश्न किया जाता है चाहे घे बात हमारे पूर्वजो को फितनी ही स्थायी और पवित्र अंधती रही हो। सर्वत्र सन्देह और अशान्ति है और राज्य तथा समाज की युनियादों में भारी परिवर्तन हो रहा है। स्वतंत्रता, न्याय, सम्पप्ति और यहाँ तक फि कुटुम्म सम्बन्धी पुराने स्थिर विचारों पर प्रहार हो रहे हैं जिन का . 1