पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२२

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परिणाम क्या होगा सो महीं कहा जा सफसा । यह समय ऐसा है सब हाँसार में परिवर्तन हो रहा है और उसके फल स्वरूप नयी व्ययस्या का जन्म होने वाला है। कोई नहीं कर सकता कि मयिप्य के गर्भ में क्या है, फितुहम कुछ विश्वास के साय कह सकते है कि एशिया और भारतका भी संसार की भाषी मीति में निर्णयात्मक भाग होगा। यूरोपियनों के प्राधि पत्य का छोटा सा दिम अपने अन्त को पा च रहा है। यूरोप प्रय कार्य और महत्व का केन्द्र नहीं रहा है । भविष्य प्रब अमरीका और ऐशिया पर निर्भर करता है। भूठे और अपूर्ण इतिहास के कारण हम में से किसमों हो को विश्वास करा दिया गया है कि युरोपक सदा संसार पर प्रभुत्व रहा है और एशिया सवा पश्चिम को सेनाओं के सामने मुकता रहा है। हम भूल गये हैं कि एशिया की फौजों ने युरोप पर विजय प्राप्त की थी और आज कल का युरोप एशिया के उन्हीं प्राफमण कारियों के पशजों से आपाद है। हम भूल गये है कि भारत ही था मिसमे सिकन्दर की सैनिक शकि तोड़ी यो । विधार मिस्सन्देह पशिया और मासकर भारत का भूषण या, पर कार्यक्षेत्र में भी एशिया का कार्य साक्षा महान रहा है। किन्तु हम में से किसी को यह इच्छा नहीं कि एशिया या युरोप की सेनाए पुनः महादीपों पर भाममण करें। काफ़ी पढ़ाईयों हो चुकी हैं। 1 1 1