पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२१३

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(२०६ ॥ 1 अवश्य उसके इल-बल-वर्तन भी नीलाम करा लिये जावंगे। महरों के सुमोत बढ़ाने की अपेक्षा रेनों के सुमीत बढ़ाये जा रहे हैं कि फब इन के खेतों में इम की सुबह की कमाई पके और कय हम उसे लेकर भागे। अप न्याय और शासन की बात पर विवार कीजिए। शासन करने वाले हाकिमों के साथ प्रशा के लोगों से व्यवहार

कुछ ऐसे पेंच पड जाना असम्भय ही नहीं वरन अनिवार्य । जिन में न्याय की प्रायश्यकता पड़ती है ऐसी दशा में शासम और न्यायाधोश का एक होमा कभी न्याय नहीं हो सकता। क्योंकि बहुत सी हालत में फर्यादी शत्सक पर ही फर्याद करेगा और शाशक को मुद्दाले के रूप में माना पड़ेगा । ऐसी दशा में वही यदि म्यायाधीश बन कर बैठेगा तो कभी म्याय की प्राशा नहीं की जा सकसी है। मौर्य राजाओं के राजस्व में न्याय और शासम के महकमे अलग अलग थे • मुगल राजाओ के यहां भी यही बात थी। स्वेद की बात है कि उदारता और पति की शेती पधारने पाने पश्चिम के दम घमएमी लोगों के राजस्व में ऐसे दोष विच मान हैं जिन्हें अब सभ्य ( उम की पय में ) काल के कार हिन्दुस्तानी राजे-जिन्हें अब दुर्भाग्य से शासम की तमीज नहीं रही है-समझ सके और काम में ला सके थे। अन्त में मैं इस अायाय को समाप्त करते हुए कामम शम्ब