पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२१२

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- ( २०५) रकम मिलने का लालच म होता तो यह इन अमागे किसानों को मी उन्हीं संम्मिये को गोली से यूहे को सरह मार डालती जिससे पिछले दिनों में इतमाग्य व्यापारी और शिल्पो मार क गये थे। चीन से रुपये मटफमे के ही लिये तो सरफार ने अफाम फी मेती को उस्त सन दिया और खेती कराई। विला- यत के मीलेग के व्यापारियों से टेक्स में मोटी रकम ऐठने के लिये ही भारत के नील के व्यापारफा पटरा कर साला और प्रय संकाशायर और मम्चेस्टर के मेष्ट्रिय व्यापारियों की रकैती भरपूर हिस्सा पाने के लिये ही सरकार लम्बे धागे की पास वाने के लिये भारत के घे-समझ किसानों को मांसपट्टी यह गत यात प्रथम से कहा जा रही है कि फिसानों के पर सरकारी लगाम का भार इतना है जिसना किसी भी म्प और धनी देश के किसानों पर नहीं है और तहसीलदार मींदार और पनियों के खगलों में यह इस तरह फसा हवा कि किसी तरह भी ससका सार होना असम्मष है । रुपया एका सकने पर-चाहे यह सरकारी हो चाहे बनिये पापा नींदार का कोई कानूम उसकी मदद करने वाला - उमको साको हिमायत करनेवाला और उसे उबारने वाला नहीं । दोन, अमागा, असहाय किसान किसी भी कारण से ग्स प्रदापगी न देने से अवश्य जेल में ठूसा जायगा और