पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२१५

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1 ग्यारहवां अध्याय 1 1 अंगरेजी शासन में प्रजा की दुर्दशा किसी भी शासक-मएसल के कानून-मिर्माता यदि कानू मिर्माण करते समय अपने और प्रजा के स्वार्थों में भेद समभ और अपनी स्वार्थ रक्षा के लिये कानूम की घठन में राजनैतिव छम्म प्रयोग करें तो प्रजा की दुर्दशा के लिये यही बहुत कुछ है पिछले अन्याय में हमने इस बात पर प्रकाश माना है कि अंग्रेजी शासम-पद्धति के दोष कैसे है और अंग्रेजी कानूनों । कितनी कमी, लापरवाही और राजनैतिक दल है-और । ही कारण प्रभा की धुर्दशा को कम नहीं है। और इन्हीं केवल काप्यों से प्रजा जिस विपत्ति म पडी है और जैसी भाराकोट हो रही है यह विधारने योग्य है । तिस पर कुछ गुप्त रीतियाँ हैं जिम का,कानन से भी उतना सम्बन्ध नहीं है और जिनका अभिप्राय यह है कि भारतीय प्रशा मी म उठने पाये-कमी न योग्य होने पापे कमी म सशक्त और प्रस्त्र-तेज से पूर न होने पाये।