पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२१६

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२०४ ) ये मोतियां यदि खुलम खुमा कानून की शकल में पारा समा में पास करा दी गई होती तो अब तक कब को अंग्रेजो शासन-पदति संसार में बदनाम हो गई होठी । पर अंग्रेज इन्धिमान-दुनियादार आति है, सम्हों मे मा महीं थालो है कि ये अपनो तुसम खुला बदनामो को ऐसे फूहड ढंग से फैन साने देंगे। किन्तु कोई भी विचार-शोन समन जो भारत में इस सिरे से उस सिरे तक घूमेगा, भारत को ध्यान से ठेगा, वह यह अवश्य कहेगा कि भारत किसो ईमानदार रामा की मना नहीं है। जिस प्रकार पिता को यह गर्व होना चाहिये कि उसका परिवार सुखी, समृर भोर परिरत है ग्सी प्रकार प्रत्येक पजा के लिये यह गौरव की बात है कि उस की प्रमा सुस्मी, समय और परिसत हो । और जो पिता पारामा ऐसा गर्व प्राप्त नहीं कर सकता है वह या सोई मान है या अकर्मण्य । मुझे जाचार हो कर कहना पता है कि अंग्रेजी शासम में प्रजा की बहुत ही दुर्दशा है। सब से मथम में सम्पत्तिको पातको उठासापोकि पर कलियुग सम्पति का युग है । पैसे को वयम् में मनुष्य को इस योग्यता वोली जाती है। वैसा ही मनुष्य का बाप, चाचा, ताल और जमाई है। बिना पैसे के धामी गधा है।क्से हाथ में रहने से भाग जातियां पिजयिनो होती है। पसे को बदोलत सन्द वीरता कामगा मिलता है। पैसे को