पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२३०

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सोद सकते महीं । जहाँ इनकी मीतरी या बीगर्स है यहाँ मैं मूल नहीं सफ्ता। में यह कह सकताई कि वह सारों को धघिया बनाने का पसीने की कमाई भले ही चूसने में उस्ताद हो जाये, राजपूत ( २२३ ) सम्बन्ध में मो फहना चाहता हूँ कि जो अपने आपको राजा कहते हैं और अपने निस्तेम चेहरे को भड़कीली पोशाक से समा कर अमोम पर पैर नहीं रखते हैं। मुझे अफसोस है कि मैं इन्हें राजा नहीं पल्के अंग्रेजों की प्रज्ञा समझता है। और यद्यपि ये अकष्टयेग महाशय पूरी दुर्दशा के योग्य हैं, पर फिर मी मना की दुर्दशा की याम के साथ इनकी दुर्दशा का यणन यह बात कही गई कि इन राजाओं के शोज धीर ठाठ कभी केमे ये। पर प्रात क्या है ? एक तो इनमें धीरता पूर्वक पप राउद को मुंह से निकालने की शक्ति नहीं रह गई है। दूसरे सनको अवस्थाये ऐसी गांठ कर पराधीम कर दी गई है कि इस मकार शतों को मान कर राशा होना कोर सेजस्वी पुरुष अजमेर में एक मेयो कालेज जहाँ राजकुमार पढ़ाये झाते हैं। मुझे धड़ों की भीतरी दशा, कुमारों का रहम सहम उनके भाचरण और उनको शिक्षा की सारी हकीकत माखम है। कारमाना है। ये जवान लड़के भागे राजा बन कर प्रजा की कमीन स्वीकार करेगा। ,