पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२२९

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। २२२ ) ) सकता हूँ कि जेल अपराधियों के सुधार या दण्ड का स्थल नहीं है, वह अपराधों की पाठशाला है। यहाँ के कर्मचारियों का व्यवहार, यहाँ का आहार विहार, वहाँ की कुत्सित निवास प्रणाली सब मनुष्यस्य के सूक्ष्म कोमल मावों को नाश करने वाला है। सप यातों के सार-रूप यह कहना कठिन है कि प्रजा की भीतरी दशा क्या है । अमोर, गगेष, शिक्षित, साधारण व्यघ सार, अपराधी, बच्चे, भारत के प्रत्येक प्राणी ठीक उसी पया में है जिस दशा में एक अनाथ परिवार के लोग होते हैं। मानों उम पर किसी का शासन नहीं है-किसी का अधिकार महीं है। कोई उनका स्वामी मही है। मारत व्यर्थ पसीना बहा रहा है-व्यर्थ खून बहा रहा है-व्यर्थ औसू बहा रहा B है यह भूखा है, यह दवा हुआ है, वह रोगी है, वह पोच है, वह : तुस्नी है, तिस पर भी वह शक्तिशाली अंग्रेजों की प्रजा है- धिफ्फार है इस राजस्व पर साधारण व्यकि भी अपने पालतू पशु-पक्षियों को समा कर रखता है, उनके स्थान-पाम और निवास की सद्ध व्यवस्था करता है। शायद अंग्रेजी सरकार की दूष्टि में हम उस व्यवहार के भी योग्य नहीं है। हम फसाई के घर बकरे की माप्ति है। ये बात उन अभागे लोगों की है जिन्हें सभी प्रजा कह कर तुष्छ दृष्टि से देखते हैं। अब मैं पकाघ बात उन महानों के 1