पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२६०

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( २५१ ) दिये गये। सिसपर मो हमने आज तक सदा तुम्हारी एक एक का धूम्द के स्थान पर अपने रकका महासागर पहाया है- यह क्या मूठ है। क्या इससे तुम इन्कार कर सकते हो ? तुम्हारी सरकार का पर्दा फाश हो गया है। हम अपनी राष्ट्रीय महासमा में गुथ गये हैं। उस समा का कहना है कि तुम्हारी राज्य पदति जंगली है। क्योंकि उसके कानून की से तुमने मिरपराध प्रजापर गोली बरसायी। स्त्रियों के मुम पर मे घंघट घटा कर उमके मुंह पर थूक दिया। पुरुषो को नंगा करके वेश्याओं के साममे कोडे लगाये थे। भले खोगो को कोड़ों की तरह रंग २ फर बनाया गया। उस समा फा कहना है कि तुम्हारी राज्य पति पुटेरी है तुम तमलाह के बहाने सब रकम मेव में भर कर जा रहे हो और भारत को श्रणी और दिवालिया बना रहे हो। यह समा तुम पर अप राष लगातो है कि तुम्हारी सरकार मनुष्य समाज के मंतिक जापन को माश करने वाली है। क्योंकि तुमने अपनी प्रामद के ध्यान से ही, शरारा फी विक्री जारी कर रखी है। इस सभाका विश्वास है कि तुम भारत की भारतीयता को नए करमा और बिलापत केल्यापारकोउत्तेजन देना भपनो यजनीतिसममये हो। । यह तुम्हारा प्रज्ञा प्रोह है। उस समस्त विश्व के स्वामी के सम्मुप, हम मसंख्य भारतीय मर भारी तुम्हारा शकिमान सचा पर यह अभियोग लगाते हैं। 1 1