पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२८६

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fit bolo ar mie arrot rreth PRIL ( 204 ) तर का संस्कृति को आदर सम्मान की दृष्टि से देखते हैं तथापि ससा आदर सम्में मेरे प्रिटम के विषय में महीं है। हम लोगों के सामने पौर्यात्य और पानिमात्य संस्कृति के समन्ध का झगड़ा ही मुख्य प्रश्न है। पौर्वात्य संस्कृति का कटाक्ष परोपकार और पुण्य पर है। पाश्चात्य संस्कृति उपयु तता पोर जबरदस्ती पर जोर देती है। जब हमारा विश्वास पुण्य और परोपकार पर होता है, अन्य घोगों को हम यहा दीक्षा देते हैं। किन्तु जब हम उपयुक्ततावादी बन जाते है पार जपरपस्ती परमे लग जाते हैं, सब जमता को मशीमगम्स के दाग हरा देते हैं । म सदगुणों के द्वारा प्रयाश लोगों को भष दीक्षा देते तप घे अपनी पतितावस्था में मी-नेपाम के समान ही पकारवर हो जाते है। किन्तु शिम पर अवर पस्ता से अमल मापा जाता है तुम सामधाम होते पए भी, इजिप्त अपया हिन्दुस्थान जिस प्रकार ब्रिटिशों से स्वित्र हो जाने के क्षण २ पर प्रयल करते हैं, उसी प्रकार अपन करत ही रहेंगे। परन्तु पदि ग्रेट मिटिम पुर्यक्ष हा गया वो हिन्दुस्थाम और इशित पांच ही वर्षों के भीतर उस की हो आधेगे। ! इस पर से पोर्यात्य और पासमास्य कति की महत्ता म्यान में भा जायेगी। पशिया सर का एकीकरण करने के एक हम परियाई लोगों को कौमसीमीय पर स्वतंत्रता की per poder TAR tortor समासे मुक्त I