पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/२९५

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1 t 795) मनुष्य पल मे युरोप ओर एशिया की संख्या इस प्रकार है- हिन्द ३०॥ प्रोट, खोम ४० मोड़, सयाम, अयाम और अग्नेय विद्या के पश, जापान और अन्याम्य देशों की संख्या अनेकों फोड़ होगी। हम एशिया में के लोगों की जन संख्या ससार की जन संख्या से आधी अम संख्या है । युरोप केवल ४० कोर को प्रात्रावो कार है। परन्तु एशिया को भाषादी है 80 कार! ४० कोस की जन संख्या, ६० झोस पसंख्या को घोर साले, यह म्याय और मनुष्यत्व के विपरोत है । जो २ न्याय और मनुष्यस्व के विरुद्ध होता है उस की अन्त मे हार ही होती है । सभाग्य से युरोप मे के कुछ लोग उस ध्येय के घशीभूत महीं हुए हैं और वे इसी ध्येय का पुरस्कार करते रहते हैं। इस समय युरोप मे एक नया ही राष्ट्र निर्माण हुआ है। उस राष्ट्र का, श्षेत सर्प की तरह, समृधे योरोप ने बहिष्कार कर सराला है। एशिया के कुछ राष्ट्रों में भी उसो वृत्ति का अंगीकार किया है। यह राष्ट है स स अपने गोरे भाइयो से फटफना नहीं चाहता । कारण! सस का विश्वास उपयु: कता और जबरदस्ती पर नहीं है किन्तु उस को विश्वास परोपकार एवं पुण्य पर ! सस न्याय का पुरस्कार करता है। इसी से उसने एशिया के साथ अपना सम्बन्ध जोड़ लिया है। युरोपियनों को भय है किस सनमये शवों को सफल