पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/३४

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1 (24) वह स्थोकार सोम करना चाहिये । फजकत्ते के प्रस्ताव को मानमे से तो हमारे सामने पफ स्वतन्त्रता फादी पक्ष्य है। यद शब्द अच्छा तो नहीं है क्योकि ससार में इस का अर्थ आम 'सब से अलग पहना' पिया जाता है। पर स्वतन्त्रता से हमारा अभिप्राय ग्रिटिश प्राधाम्य अोर साम्राज्य बाद से स्पतम्भता का है। स्थर्य स्यतन्त्र होने के बाद मुझे कुछ मा सम्देद नहीं कि भारतय ससार के सहयोग भीर घठन के प्रयत का धागत करेगा मोर सघ के लिये अपमी पुष स्यत बता देने को भी तयार होगा जिसका यह वरापरी का मेम्बर होगा। आज का प्रिमिश साम्राग्य घेसा सपमहीं ओर उष तप यह हो नहीं सकता जप तक यह फरोड़ों आदमियों को अपनी अधीमता में रखे हुए भोर स सार का बहुत बड़ा माग अपने कम्न में पहों को नियासियों की इच्छा के पिण्य किये हुए है । यह सप तक स्वतन्त्र राष्ट्रों का संघ नहीं हो सकता अय तक इसका आधार साम्रास्यवाद है ओर इसको रोगी का प्रणाम साधन अन्य जातियों का वोहम फरमा है । वस्तुतः यह साम्राग्य एक प्रकार से घोरे पोरे छिम-मिन्न हो चला हैस की समसुज्यता प्रस्थापी है। इसका एफ मेम्बर दक्षिण माफीका प्रसन्न महीं है और मायरिश झी स्टेट इस में रहने को पज़ी नहीं है । मिश्र प्रजग हुभा आ रहा है भारत कामन- पेक्य की बराबरी का मेम्मर कमी नहीं हो सकता जब तक