पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( ३४ ) प्राधिक कार्यक्रम ऐसा हो जो मनुष्य को धन की पलि बढ़ाने घाला म हो । अगर फार कारपार अपने मजूरों को मस्सों मारे विना नहीं चल सकता तो यह अवश्य बन्द होना चाहिये। अगर जेसी में काम करने वालों को काफो खामा नहीं मिलता तो पीच के घे लोग न रहने चाहिये आ उन्हें माने से यश्चित करते हैं। खेत या कारखानों में काम करने वाले को कम से कम इतमो मजूरी पाने का हक है कि यह साधारणतः प्राराम से रह सके। सर्वदल कमेटी ने स्वीकार किया है कि कितने घरठे काम फग्ने स थमजोषो का बल म टूटेगा । आशा है कि कांग्रेस भी वैसा हो करेगो । इस के सिवा यह मजूरों के अच्छे जीयम पी सुप्रसिद्ध माँगे भी स्वीकार करे और उन लोगों का संगठन होने में सब तरह से सहायता थे । पर उद्योग धन्धों के मजूर तो भारम के एक वात छोटे अंश हैं। सब से अधिक तो किसाम है जो कि प्राय के लिये ये रहे हैं। हमारे कार्यक्रम में उन को वर्तमान अवस्था से उद्धार का प्रयम्य अषण्य होना चाहिये । वर्तमान कानूनों और लगान के यर्तमाम प्राधार में परिषप्तन होने से हा पास्मय मै उम को रक्षा हो सकती है। हमारे बीच बहुत से जमींदार है ओ प्युशी से रहें। पर उन्हें यह अवश्य समझमा चाहिये कि बड़ा पड़ो जमींदारियों की पद्धति ससार से पड़ी शीघ्रता से उठो क्षा रही है । पूजीपतियों के देश में भी वही रियासतों के टुकड़े