पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/५०

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i 23 ) हिंसा फी ही तूतो मोज दी है और सम्मव है फि हम भी उस के प्रयोग से लाम उठा सकते। पर सगठित हिंसा के लिये न तो हमारे पास सामान हो है और न उस को शिक्षा हो मिली हे और एफ दो व्यक्तियों का हिंसात्मक सापन काम में लामा मिराशा सूचक है । मैं मानता है कि इस प्रश्न पर हम में से अधिक लोग इस द्दष्टि से विचार नहीं करते कि नैतिक दृष्टि से हिंसा ठीक है या नहीं बल्कि इस दष्टि से करते है कि पह कार्य में लाई जासकती है या नहीं। भोर यदि हम हिंसा का मार्ग अस्वीकार करते हैं तो इसी से कोई तात्विक परिणाम फी भाशा नहीं पाई जाती । किन्तु अगर भविष्य में किसी समय यह फाप्रेस या राष्ट्र इस निर्णय पर पहुंचे कि हिंसा के साधनों से हम गुलामी से छुटकारा पा सकते हैं तो मुझे कुछ भी सन्देह नहीं है कि यह उन्हें स्वीकार करेगी । हिंसा घुरी है, किन्तु गुलामी उस से भी अधिक पुरी है। हमें यह भी याद रखना चाहिये कि अहिंसा के प्रधान प्रसारक ने स्थय कहा है कि 'कायरता के कारण सहने से इनकार करने से लड़ाई करना अधिक अच्छा है।' स्वतन्त्रता के लिये कोई माम्दोलम हो उस कासार्वजनिक होना आवश्यक है और सार्वजनिक भानन्दोलन का शातिपूर्ण होना अति आवश्यक है। हां, सग ठित बलवे को दो वात दुसरोहै। चाहे इस वर्ष पहने का मसहयोग प्राम्दोलन रठाये था माज कस के सामन सार्थ 3