पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/८१

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( ६५ ) श्रेणी का भादमी है। इस लिये भारतीय नादि भेद की प्रथा के अनुसार उसकी गणमा सृवीय भेणी के हिन्दुओं में है। और सब से कुस्तिक व्यापार पह है कि पसने शद्रों और पारिया आदि अछूतों को अपना फर अपने को जाति-ज्युत कर डाला है। परन्तु इस से लज्जित होना तो दूर रहा या अपने को गौरवाचित नयाल करता है और अपने को झार वार (भारत घर्ष में रास्तों पर झार देने वाले पारिपा पा जाति व्युतौ से भी मीच समझे मासे हैं। कहा करता है । मानौ यह इस के बड़े सम्मान का परिचय है। मुझे याद है, एक पार सन् १९९५ में, मद्रास की एक समा में गाँधी में कहा था,- “मुझे मारदार कहा गया है। यह माम ग्रहण करके मैं गर्षका अनुभव कप्सा हूँ। क्योंकि माह देने वाले को काम है साफ करना और साफ करने से बढ़ कर महत्वपूर्ण कार्य और क्या हो सकता है, यह मैं नहीं जामतां । मैं भारत- वर्ष का फूटा साफ करने की कोशिश करता है। महात्मा गांधी में जो सांघातिक शक्ति है, उसका अनुभव हमे अवश्य ही करना पड़ेगा, उसको पारुति कम से कम पचास्य श्रावके अनुसार प्रशंसनीय महीं कही जा सकती। उसका भीर स्वमाष और यकृता, वर्तमान राजनीति से प्रत्या रूपमै अलग इना भादि उसका बाहरी सँग मात्र है। यह वास्तविक भाषों को छिपा कर रखना ही पसन्द करता है। APPL