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चौथा अध्याय । . देश का वातावरण 2 -2017 , गत ४० वर्ष से हम यह अनुभव कर रहे हैं कि अन्धकार में डूबी हुई जाति के भीतर ही भीतर एक नवीन जाति उत्पा हो रही है। प्राचीन हिन्दु जाति धर्मग्लानि के फेर में पड़ कर शुद्राशय हो गई थी। बीच में अनेक महान् श्रात्माऐ भाई और अपनी शक्ति और प्रतिभा को खर्च करके जाति के विषम विपत काल में सहायता ये गा । धम्हीं के प्रमोघ प्रमाव से आज मधीम जातीयता के घीज उगते दीख रहे हैं। यह मवीन जातीयता साहसी, तेजस्थी, उच्चाशय, उदार, स्वार्य त्यागी परोपकार और देशहित साधने के लिये उत्साही तथा उम्मा कांक्षाओं से परिपूर्ण है। श्राज जो पृय और युवकों के विचारों मै अमेक्य तथा कार्यक्रम में विरोध दीख रहा है, यह इसी उत्थाम का कारण है। कलियुग अन्धकार का युग था-बह अव समाप्त हो रहा प्रतीत होता है। देश का तरुण मएक्स। आग्निस्फुलिंग के समाम पुराने झोपड़े को हा कर नवीन महल का निर्माण किया चाहता है। इस नवीन सन्तति