पृष्ठ:२१ बनाम ३०.djvu/८४

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जिस कार्य को प्रारम्म किया है उसे विना पूर्ण किये उस का शाम्त होमा सम्भव नहीं प्रतीत होता। इस मषीनता के मोवर भी प्राचीमता का प्रमायदे, यह बिना कहे महीं रहा जा सकता। और जब फमी भो भारत स्वाधीन होगा-यही विशेषता उसे संसार के राष्ट्रों में स्वतन्त्र स्याम देगी। ब्रिटेन ससा मे मारत के इस उत्थाम को सदेष हो विप कह कर परिचय दिया है, विप मानवीय दुदय की प्रति निरुप भावना है। परन्तु जो कुछ देर में हो रहा है यह निटेम सधा के लिये चाहे भी कितनी हानि कर हो निझए भाषना तो कदापि नहीं है। पह तो कहा हो महीं जा सकता कि इस भाषमा के बीच में कहीं भी विप है ही नहीं, पण्तु पदि कहीं घृणा और विप है। सोबदले के माय से है। जो सर्वथा स्थामाधिक है। गोरे और धर्म गोरे पत्रों में समय २ पर देश का इस उस्थान भावना को जिस स्पेक्षा, पणा, और तिरस्कार तथा विप से प्रफट किया है, तथा समय २ पर गोरे तया माघे गोरे मनुप्यो बारा रेल, बाज़ार कर तथा अन्य स्थलों में जैसे अपमाम जमक तथा कमीने माफमण मुए है उसे सहन मारला बड़े से सहिष्णु मनुष्य के लिये सम्भव नहीं। कोय एक स्वाभाविक वस्तु है मो प्राणी के साथ-पहता है। सच्चा और सतोगुणी कोष जिस मनुष्य की भृकुटी मैगी