उत्साह के साथ लाकर बसाया था। भंडारा में भी इसी कारण बहुत अच्छे तालाब मिलते हैं। बड़े तालाबों की गिनती में सबसे पहले आने वाला प्रसिद्ध भोपाल ताल बनवाया तो राजा भोज ने था पर इसकी योजना भी कालिया नामक एक गोंड सरदार की मदद से ही पूरी हो सकी थी। भोपाल-होशंगाबाद के बीच की घाटी में बहने वाली कालिया सोत नदी इन्हीं गोंड सरदार के नाम से याद की जाती है। ओढ़िया, ओढ़ही, ओरही, ओड़, औड़ - जैसे-जैसे जगह बदली, वैसे-वैसे इनका नाम बदलता था पर काम एक ही था, दिन-रात तालाब और कुएं बनाना। इतने कि गिनना संभव न बचे। ऐसे लोगों के लिए ही कहावत बनी थी कि ओड़ हर रोज नए कुएँ से पानी पीते हैं। बनाने वाले और बनने वाली चीज़ का एकाकार होने का का इससे अच्छा उदाहरण शायद ही मिले क्योंकि कुए का एक नाम ओड़ भी है। ये पश्चिम के ठेठ गुजरात से राजस्थान, उत्तर प्रदेश विशेषकर बुलंदशहर और उसके आसपास के क्षेत्र, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, उड़ीसा तक फैले थे। इनकी संख्या भी काफी रही होगी। उड़ीसा में कभी कोई संकट आने पर नौ लाख ओड़ियों के धार नगरी में पहुँचे की कहानी मिलती है। ये गधे पालते थे। कहीं ये गधों से मिट्टी ढोकर केवल पाल बनाते थे, तो कहीं तालाब की मिट्टी काटते थे। प्राय: स्त्री-पुरुष एक साथ काम करते थे। ओढ़ी मिट्टी के अच्छे जानकर होते थे। मिट्टी के रंग और मिट्टी की गंध से स्वभाव पढ़ लेते थे। मिट्टी की सतह और दबाव भी खूब पहचानते थे। राजस्थान में तो आज भी कहावत है कि ओढ़ी कभी दब कर नहीं मरते। प्रसिद्ध लोकनायिका जसमा ओढ़न धार नगरी के ऐसे ही एक तालाब पर काम कर रही थी, जब राजा भोज ने उसे देख अपना राज-पाट तक छोड़ने का फैसला ले लिया था। राजा ने जसमा को सोने से बनी एक २३ आज भी खरे हैं अप्सरा की तरह देखा था। पर ओढ़ी परिवार में जन्मी जसमा अपने को,