सन् १९२५ से २७ तक हिन्दू महासभा के प्रधान मन्त्री रहे। १९२६ में
बम्बई-कौंसिल के सदस्य चुने गये। सत्याग्रह-आन्दोलन १९३०-३२ और १९४०
मे भाग लिया तथा जेल गये। '४२ ई० के देशव्यापी दमन में जेल में हैं।
जर्मनी--यूरोप का एक शक्तिशाली राज्य, क्षेत्रफल २,१०,००० वर्ग-मील, जन-सख्या ७,८०,००,००० है। इसमें आस्ट्रिया और सूडेटनलैण्ड की जन-संख्या शामिल है, परन्तु बोहेमिया, मोराविया तथा अधिकृत पोलैण्ड की जन-सख्या शामिल नहीं है। सन् १९१८ की पराजय के बाद जर्मनी में प्रजातत्र की स्थापना हुई। इससे पूर्व एकच्छत्र शासन-प्रणाली प्रचलित थी। सन् १९३० मे जर्मनी में प्रजातत्र का हास आरम्भ हुआ और नात्सी दल का बल बढने लगा। १९३३ के जुलाई मास में हिटलर का दौर-दौरा हो गया। इस समय जर्मनी में कोई लिखित शासन-विधान नहीं है। यद्यपि प्रजातंत्रवादी शासन-विधान का विधिवत् अन्त नहीं किया गया है, परन्तु जर्मनी में हिटलर ने एक अलिखित विधान की निम्न प्रकार से रचना की है।
शासन की समस्त सत्ता नात्सी-दल के नेता (Fuhrer) हिटलर में
केन्द्रित है। उसकी इच्छा ही कानून है। वह समस्त मत्रियों तथा उपनेताओं
की नियुक्ति करता है। यह मत्री तथा उपनेता सार्वजनिक, सांस्कृतिक,
आर्थिक तथा समाज के जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के लिए नेताओं की नियुक्ति
करते हैं। यह नेतृत्व का सिद्वान्त कहलाता है। चुनाव तथा प्रजातत्र से
नात्सी और हिटलर घृणा करते हैं। हिटलर को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत
करने का अधिकार है। जर्मन पार्लमेट (राइखताग-Reichstag) मे ८५५
सदस्य हैं। सब नात्सी है। यह राइखताग अपना अधिवेशन सिर्फ हिटलर का
भाषण सुनने के लिये बुलाती है। किसी भी सदस्य को भाषण करने का अधिकार नही है। राइख को कानून बनाने का भी अधिकार नही है। क़ानून सरकार द्वारा बनाये जाते है जो अपने नेता हिटलर के प्रति जिम्मेदार है। कोई
बजट न-पार्लमेट के सामने प्रस्तुत किया जाता, न जनता की सूचना के लिये
प्रकाशित ही किया जाता है। सरकार मनमाने ढंग से कर लगाती तथा
उन्हे वसूल करती है। नागरिको को सरकारी किसी भी कार्य में कोई हस्तक्षेप
करने का अधिकार नही है। राष्ट्रीय समाजवादी अर्थात् नात्सी दल ही