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अटलांटिक योजना
 


करती रही। इसने कटुता का रूप धारण कर लिया। १९४१ के जनवरी महीने मे सुभाष बाबू भारत से कहीं बाहर चले गये। उनके बाद भारतीय सिविल सर्विस के भूतपूर्व सदस्य और सुभाष बाबू के अनन्य सहकारी श्री विष्णु हरि कामथ इस दल के प्रधान संचालक रहे और उनके साथ श्रीमुकुन्दलाल सरकार प्रधान कार्यकर्त्ता रहे है। इस दल के सदस्यों ने कलकत्ते के कालकोठरी के स्मारक—हालवैल मानूमेंट—के उखड़वाने के लिए सन् १९४० मे सत्याग्रह किया और इसमें उन्हें सफलता मिली। बंगाल-सरकार ने इस स्मारक को नष्ट कर दिया और श्री सुभाष बोस के सिवा सब सत्याग्रही बन्दियो को भी रिहा कर दिया। सन् १९४२ के जून मास में सरकार ने अग्रगामी दल को गै़रक़ानूनी घोषित कर दिया और इसका दमन किया।


अटलांटिक योजना—अगस्त १९४१ मे ब्रिटिश प्रधान मंत्री श्री चर्चिल संयुक्त राज्य अमरीका के राष्ट्रपति रूज़वेल्ट से नवीन युद्धपोत ‘प्रिंस आफ वेल्स' मे अटलांटिक महासागर में एक स्थान पर मिले। इसी स्थान पर इन्होने एक घोषणा-पत्र तैयार किया, जो 'अटलाटिक चार्टर' के नाम से प्रसिद्ध है। इसकी योजनाये इस प्रकार हैं:—

( १ ) हमारे देश न किसी देश पर विजय चाहते है और न किसी राज्य के प्रदेश पर अधिकार जमाना।

( २ ) हम कोई ऐसे प्रादेशिक परिवर्तन नही चाहते जो उन देशों की जनता की स्वतन्त्र आकाक्षा के अनुकूल न हो।

( ३ ) हम समस्त राष्ट्रों के, अपनी सरकार की प्रणाली को पसन्द करने के, अधिकार का आदर करते हैं, और हम यह देखने के लिए लालायित हैं कि उन्हे पुनः प्रभुत्व के अधिकार तथा स्वशासन प्राप्त हो जिनसे कि वे बलपूर्वक वंचित किए गए है।

( ४ ) हम अपनी वर्तमान ज़िम्मेदारियों का समुचित ध्यान रखते हुए इस बात का प्रयत्न करेगे कि छोटे-बड़े, विजित तथा विजेता सभी राज्योंं को समानता की शर्तों पर व्यापार करने तथा संसार के कच्चे माल को प्राप्त करने का अधिकार हो जिनकी, आर्थिक सम्पन्नता के लिए, उन्हे ज़रूरत है।

( ५ ) हम समस्त राष्ट्रों में, आर्थिक क्षेत्र मे श्रमिको की दशा में सुधार,