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कराची-प्रस्ताव
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दिया। कुलीनता-हीनता-सूचक उपाधियो और


उपनामो को छोड़कर, १९३४ मे, तुकों में सादा उपनाम लिखने की प्रथा प्रचलित थी। अपने नाम कमाल के साथ अता तुर्क जोडा और ग़ाज़ी मुस्तफा कमाल पाशा के बजाय कमाल अता-तुर्क नाम ग्रहण किया। अता-तुर्क का अर्थ है तुर्कों का पिता। सन् १९२३ में लतीफी हानुम नामक एक सुशिक्षिता आधुनिक सुन्दरी से निकाह किया, और ज्योही कमाल को विश्वास हुआ कि लतीफी उनकी राष्ट्रोद्धार की नीति पर अपना प्रभाव डालती है, त्योही १९२७ में उसे तलाक़ दे दी। १० नवम्बर १९३८ को तुर्की के त्राता कमाल अतातुर्क का, यकृत्-रोग के कारण, देहान्त हो गया।


कराची-प्रस्ताव--राष्ट्रीय महासभा (कांग्रेस) के कराची-अधिवेशन (मार्च १९३१) में एक प्रस्ताव इस आशय का स्वीकार किया गया जिसके द्वारा जनता को स्वराज्य की रूपरेखा समझाने तथा उसको आर्थिक स्वाधीनता देने के लिये भारत के स्वराज्यकालीन शासन-विधान में जन-समुदाय के मौलिक अधिकारो और कर्तव्यो, मज़दूरो की स्थिति, कर तथा सरकारी व्यय और सामाजिक तथा आर्थिक कार्यक्रम का विस्तृत उल्लेख किया गया था। चूॅकि यह प्रस्ताव, इस सम्बन्ध के सार्वजनिक विचार-विनियम के बिना ही, स्वीकृत हुआ था, अतएव अगस्त सन् १९३१ की भारतीय कांग्रेस कमिटी ने इसमे कई संशोधन किए। संशोधित प्रस्ताव को मौलिक अधिकारो की घोषणा में १४ धाराएँ हैं और मजदूरो तथा आर्थिक कार्यक्रम में १७ इसकी धाराओं में निश्चित कर दिया गया है कि स्वराज्य-प्राप्त भारत में किसी भी सरकारी-कर्मचारी का वेतन ५००) मासिक से अधिक न होगा। अल्प सख्यक जातियो--मुसलमानो, हरिजन आदि--तथा भिन्न-भाषा-भाषियों और विदेशियों के अधिकारो और स्थिति की व्याख्या भी कर दी गई है।