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॥५॥ उपर उपर लसिलें ताहीं। कलि जुग मानि बिप्र बलु कले कृष्ण सुनि पं0 गई। कलि मै छत्री पोरुष जा दान धर्म ते चित न धराई। तीरथ जाय सु बणज क बेद पुरान को नहिं ग्याना। गनिका सब्द सुने धरि देहि दान तब सेवा लेंही। निसप्रेही कों कोश्य नो कलि में ऐसे देंगे ग्यानी। कहत राय सों सारंग प्रीन कलि मे बेद तजेंगे प्रानी। सुने जाय ते रसक कहान बिद्या पले विप्र जो थोरी। सभा मध्य गर्दै बलुतेरी ॥ छत्री करिने बलुत तुफाना। गर्ब मन काढू नहि जा छत्री विप्र गङ ले बेचें। बिप्र भाट बेरी करि चाहें। भागा जात मारिलें ता कों। प्रायें सनमुष कोन लाव ब्रायन तनक छोति नहि माने। नीच जाति कू घर ऐसा बालान कलि मे राई। बस्नन को कन्यो न जा निधि के आगम करें उपाई। उन को मर्म न पायो । लोग कहें चुपराये बनिया। इन को मर्मन नाहीं जनि सगे कठोर होलिंगे राई। इहि बिधि कलि जुग लोग र कलि के बानिक होंगे धूता। हसिक निंदा करें तुरंता सगे लसाई तुरत करता। सुनि हो राय कहें भगवंता॥ और जु कलि मे बिप्र में जेते ॥ धर्म नेम परहरिलें तेते सालगराम जु तुलसी सेवा। जैले जनम अकारथ देवा ॥ सो उजकले बत असनाना। कलि मे सूद्र धर्म को जान जथा सकति करि देले दाना। सुनो राय कलि के पखा