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॥१०५॥ द्र अपहरा गुनी अनंता। सूर सकल दीसें बिगसंता॥ फिस्यो टूत देष्यो चहुं फेरा। दल को अंत न पावे नेए । बोला। . टूत कहे प्रीतम सुनो तुम आये किदि काज। दल को अंत न पाई कोन ठोर को राज ॥ चोपई। टूत को आये किलिं काजा। कटक अनंत बलुत बढ़ राजा॥ पुनि पायो यह कटक अदिसा। कुंवर येक घटक्ये तुम देसा ॥ जा कास्न जादों चठि आये। बंधे कुंवर तोहि नगर बताये ॥ सुनिके टूत राज पै गयो। ले संदेस राय सों कझो॥ राजा पूछे कळु समझाई। कोन पुरस यह उतखो बाई॥ कहे टूत तुम सुनो भुवाला। कृष्ण देव आये यह काला॥ कुंवर काज जादौ चहि पाये। कटक अनंत साजि दल ल्याये॥ आये राय बली वे जादों। गज मदमतन उठी षर कादों। प्रबल कटक कछु कन्या न जाई। राजद्वार सब गंधर्व छाई ॥ दोला। . ठोर टोर मानिक दिये अरू भूलें मेमंत । राजदार गंधर्व स्ले पेलत सदा भसंत ॥ . दोला। . सकल असुर मिलि बेठिहें मंत्र करें इहिं बार। साज करो तुम अापना रुस्ती घुर रुथियार॥