पृष्ठ:Garcin de Tassy - Chrestomathie hindi.djvu/१२०

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॥ १०४॥ दोला। जब दल मारू बाजियो सबद पयो नृप कान। असुर राय मन थल्यो सोचत भयो बिहान ॥ चौपई। सकल रेन जो सोच बिहानी। प्रात भयो उठि मजलस ठानी॥ मलता मंत्री लिया.बुलाय। तिन को नृप पूछे समझाय ॥ यह बणिजारा कित तें पाया। पूछों कोन बसत भरि ल्याया ॥ बेल गोणि, सूर की नहि साथी। हीसें तुरी चिंधार लाथी॥ बणिजारा मारू कब देई । लादे गोनि नगर सुधि लेई ॥ सब मंत्री मिलि कीन जुलारा। अति चातुर तब टूत लंकारा ॥ तुम दल की सुधि ल्यावो जाई। कोन पुरस यह उतस्यो प्राय ॥ राजा चौकि अचंभे स्या। मंत्री मंत्र सरस जब कल्या चल्यो टूत नृप को सिर नाई। कृष्ण मंदिर में पहुंच्यो जाई॥ बोला। कोटि भान मंदिर रिये सोभा सरस अपार। देषि दूत मन घलयो मन मे करे बिचार॥ . . . चोपई। गयो दूत तब राजस्वारा। सुर नर मुनि जन देषि पियारा ॥ कनक जटित रथ धजा बिराजे । तिन की चमक देषि रबि लाजे॥ स्थ हथियार सूर की पाती। बन्यो कटक चटि जानो राती॥ रण मे चहुं दिस चुरे निसाना। देषि दूत मन मालिं उराना॥ बन्यो बजार चढू दिस दीपे। राजकुंवार सरास न सीधे ॥